Coolie Review: दर्शकों की उम्मीदों को बोझ नहीं उठा सका 'कुली', रजनीकांत की शक्तियों का ऐसा गलत इस्तेमाल कभी नहीं हुआ
इस फिल्म की हाइप इतनी जबरदस्त थी कि लग रहा था कि ये तो कमाल ही फिल्म निकलेगी, रजनीकांत का स्वैग और स्टाइल तो दिखेगा ही, आमिर खान और उप्रेंद्र के केमियो भी हैं, लेकिन फिल्म देखते हुए जब ये सोचना पड़े कि वॉर 2 ज्यादा खराब है या ये तो सोचिए क्या ही बना होगा. रजनीकांत के फैंस जरूर देखेंगे क्योंकि फैन तो फैन होते हैं लेकिन ये एक खराब सिनेमा है. दर्शकों और फैंस के साथ नाइंसाफी है, ना कहानी है ना स्क्रीनप्ले, ना रजनीकांत का ठीक से इस्तेमाल हुआ और ना केमियो करने वाले एक्टर्स का. कहानी- रजनीकांत यानी देवा के दोस्त की का मर्डर हो जाता है और उसकी तीन बेटियों पर खतरा है. रजनीकांत एक होटल चलाते हैं और शराब से उन्हें नफरत है. दोस्त के बारे में जानने पर वो दोस्त के कातिलों से बदला लेने निकल पड़ते हैं. कैसे ये बदला लेते हैं, वो थिएटर जाकर देखिएगा अगर आप ये फिल्म झेल पाए तो. कैसी है फिल्म- ये फिल्म आपके सब्र का इम्तिहान ले लेती है. फिल्म की कहानी काफी कमजोर है और स्क्रीनप्ले तो और खराब है. फिल्म में बस मार काट हो रही है, क्यों हो रही है, किसलिए हो रही है, कुछ समझ नहीं आता. रजनीकांत जैसे सुपरस्टार को ठीक से इस्तेमाल नहीं किया गया. उनका एंट्री सीन काफी हल्का है. आमिर खान जैसे एक्टर का रोल ठीक से नहीं लिखा गया. उपेंद्र से बस मार काट के लिए केमियो करवा दिया गया. फिल्म खत्म होने का नाम ही नहीं लेती, आप परेशान हो जाते हैं, आपको सोचना पड़ता है कि वॉर 2 ज्यादा खराब है या फिर ये. इस फिल्म की हाइप इतनी जबरदस्त थी, सुना है 4500 तक के टिकट बिक रहे हैं और फिर जब ऐसा सिनेमा देखने को मिले तो गुस्सा आता है. फैंस और दर्शकों के साथ ये धोखा ही कहा जाएगा. सिर्फ बीजीएम ठीक है लेकिन हम बीजीएम सुनने 3 घंटे थिएटर नहीं जाते, जैसे बागी 4 के टीजर में सिर्फ मारकाट होती है वैसे ही यहां होती है. हर कोई बस मारने काटने आता है, कहानी का सिरपैर नहीं समझ आता. एक्टिंग- रजनीकांत ने अच्छा काम किया है लेकिन उनका कोई ऐसा अवतार नहीं दिखा जो ना देखा हो. उनका स्टाइल और स्वैग बहुत अच्छे से नहीं दिखाया गया. ऐसे रोल वो कर चुके हैं, यहां दर्शक कुछ अलग, कुछ बड़ा देखना चाहता था. Soubin shahir ने ठीक काम किया है लेकिन उनका किरदार क्या कर रहा है, क्यों कर रहा है, ये ठीक से लिखा ही नहीं गया. श्रुति हसन ने बहुत खराब काम किया है. उपेंद्र बस मार काट के लिए आए हैं. एक्टिंग की गुंजाइश नहीं. आमिर ने बढ़िया केमियो किया है लेकिन उनके किरदार को ठीक से फिल्म में बताया ही नहीं गया. कुल मिलाकर एक्टर्स इस खराब फिल्म को नहीं बचा सके. राइटिंग और डायरेक्शन- लोकेश कनगराज की राइटिंग बहुत खराब है. उन्होंने एक अच्छा मौका गंवा दिया. इतनी सिंपल कहानी और ऐसा खराब ट्रीटमेंट. डायरेक्शन की तो खैर बात ही छोड़ दीजिए. कुल मिलाकर रजनीकांत के कट्रर फैन हैं तो देखिए वर्ना नहीं रेटिंग-2 स्टार्स

इस फिल्म की हाइप इतनी जबरदस्त थी कि लग रहा था कि ये तो कमाल ही फिल्म निकलेगी, रजनीकांत का स्वैग और स्टाइल तो दिखेगा ही, आमिर खान और उप्रेंद्र के केमियो भी हैं, लेकिन फिल्म देखते हुए जब ये सोचना पड़े कि वॉर 2 ज्यादा खराब है या ये तो सोचिए क्या ही बना होगा.
रजनीकांत के फैंस जरूर देखेंगे क्योंकि फैन तो फैन होते हैं लेकिन ये एक खराब सिनेमा है. दर्शकों और फैंस के साथ नाइंसाफी है, ना कहानी है ना स्क्रीनप्ले, ना रजनीकांत का ठीक से इस्तेमाल हुआ और ना केमियो करने वाले एक्टर्स का.
कहानी- रजनीकांत यानी देवा के दोस्त की का मर्डर हो जाता है और उसकी तीन बेटियों पर खतरा है. रजनीकांत एक होटल चलाते हैं और शराब से उन्हें नफरत है. दोस्त के बारे में जानने पर वो दोस्त के कातिलों से बदला लेने निकल पड़ते हैं. कैसे ये बदला लेते हैं, वो थिएटर जाकर देखिएगा अगर आप ये फिल्म झेल पाए तो.
कैसी है फिल्म- ये फिल्म आपके सब्र का इम्तिहान ले लेती है. फिल्म की कहानी काफी कमजोर है और स्क्रीनप्ले तो और खराब है. फिल्म में बस मार काट हो रही है, क्यों हो रही है, किसलिए हो रही है, कुछ समझ नहीं आता. रजनीकांत जैसे सुपरस्टार को ठीक से इस्तेमाल नहीं किया गया. उनका एंट्री सीन काफी हल्का है.
आमिर खान जैसे एक्टर का रोल ठीक से नहीं लिखा गया. उपेंद्र से बस मार काट के लिए केमियो करवा दिया गया. फिल्म खत्म होने का नाम ही नहीं लेती, आप परेशान हो जाते हैं, आपको सोचना पड़ता है कि वॉर 2 ज्यादा खराब है या फिर ये.
इस फिल्म की हाइप इतनी जबरदस्त थी, सुना है 4500 तक के टिकट बिक रहे हैं और फिर जब ऐसा सिनेमा देखने को मिले तो गुस्सा आता है. फैंस और दर्शकों के साथ ये धोखा ही कहा जाएगा. सिर्फ बीजीएम ठीक है लेकिन हम बीजीएम सुनने 3 घंटे थिएटर नहीं जाते, जैसे बागी 4 के टीजर में सिर्फ मारकाट होती है वैसे ही यहां होती है. हर कोई बस मारने काटने आता है, कहानी का सिरपैर नहीं समझ आता.
एक्टिंग- रजनीकांत ने अच्छा काम किया है लेकिन उनका कोई ऐसा अवतार नहीं दिखा जो ना देखा हो. उनका स्टाइल और स्वैग बहुत अच्छे से नहीं दिखाया गया. ऐसे रोल वो कर चुके हैं, यहां दर्शक कुछ अलग, कुछ बड़ा देखना चाहता था.
Soubin shahir ने ठीक काम किया है लेकिन उनका किरदार क्या कर रहा है, क्यों कर रहा है, ये ठीक से लिखा ही नहीं गया. श्रुति हसन ने बहुत खराब काम किया है. उपेंद्र बस मार काट के लिए आए हैं. एक्टिंग की गुंजाइश नहीं. आमिर ने बढ़िया केमियो किया है लेकिन उनके किरदार को ठीक से फिल्म में बताया ही नहीं गया. कुल मिलाकर एक्टर्स इस खराब फिल्म को नहीं बचा सके.
राइटिंग और डायरेक्शन- लोकेश कनगराज की राइटिंग बहुत खराब है. उन्होंने एक अच्छा मौका गंवा दिया. इतनी सिंपल कहानी और ऐसा खराब ट्रीटमेंट. डायरेक्शन की तो खैर बात ही छोड़ दीजिए.
कुल मिलाकर रजनीकांत के कट्रर फैन हैं तो देखिए वर्ना नहीं
रेटिंग-2 स्टार्स
What's Your Reaction?






