टीनएज की चुनौतियों पर बोलीं कुशा कपिला, बोलीं- कई बार लड़कियों को होता है सेल्फ डाउट

सोहा अली खान के पॉडकास्ट 'ऑल अबाउट हर' में एक्ट्रेस और कंटेंट क्रिएटर कुशा कपिला ने टीनएज के दौरान लड़कियों को होने वाली इमोशनल और फिजिकल चुनौतियों पर बात की. कुशा कपिला का स्टेटमेंट  कुशा कपिला ने कहा, ''प्यूबर्टी यानी टीनएज का समय एक लड़की के लिए बेहद नाजुक होता है. यह वह समय होता है, जब उनका चेहरा, शरीर और पूरी बनावट बदलने लगती है. कोई लड़की अपने दोस्तों से पहले ही डिवेलप हो जाती है, तो कोई बाद में. इस इनिक्वालटी की वजह से कई बार लड़कियों को एम्बैरेस्मेंट, डिस्कम्फर्ट या सेल्फ-डाउट महसूस होता है.'' कुशा ने अपने टीनएज समय की भी बात करी उन्होंने बताया किया कि जब वह केवल 10 या 11 साल की थीं, तब उनका शरीर बाकी दोस्तों की तुलना में ज्यादा मैच्योर दिखने लगा था. इस कारण वे खुद को लेकर बहुत कॉशस रहने लगी थीं. उन्होंने कहा, ''टीनएज में बच्चों को बहुत ध्यान देना पड़ता है कि वे किसके साथ समय बिता रहे हैं और किनसे बातें कर रहे हैं. यह उम्र बेहद सेंसिटिव होती है और थोड़ा भी गलत इफेक्ट उन्हें गहराई तक इफेक्ट कर सकता है. समाज में अक्सर लड़कियों की बढ़ती उम्र के साथ उन पर नजर रखने वाली निगाहें बढ़ जाती हैं, जिससे वे ज्यादा सतर्क हो जाती हैं.''           View this post on Instagram                       A post shared by Soha (@sakpataudi) कुशा ने बताया कि जब वे छुट्टियों में गोवा गई थीं, तो उन्होंने कुछ लड़कियों से अपनी उम्र छिपाकर खुद को दो साल बड़ा बताया, क्योंकि उनका शरीर पहले ही मैच्योर हो गया था. कुशा ने आगे एक इम्पोर्टेन्ट टॉपिक पर कि बात कुशा ने आगे बताया, ''आज भी लड़कियों को अपने शरीर को लेकर बहुत सारी उलझनें होती हैं. मेरा एक पेज है, जहां स्कूल जाने वाली लड़कियां पूछती हैं कि यूनिफॉर्म के साथ क्या पहनना चाहिए. आज भी एजुकेशन सिस्टम एंड फैमिलीज़ में ऐसे टॉपिक्स पर खुलकर बात नहीं की जाती. लड़कियां इन जरूरी जानकारियों के लिए इंटरनेट या सोशल मीडिया का सहारा ले रही हैं, जो चिंता का टॉपिक है.'' कुशा कपिला ने महिलाओं के हार्मोनल साइकिल और उससे जुड़ी परेशानियों के बारे में भी बात की उन्होंने कहा, ''एक महिला की जिंदगी में महीनेभर में सिर्फ 4-5 दिन ऐसे होते हैं जब वह खुद को पूरी तरह कॉमन महसूस करती है. बाकी समय वह या तो पीरियड्स के दर्द, मूड स्विंग्स, या फिर पीसीओडी जैसी समस्याओं से जूझ रही होती है. ऐसे में यह जरूरी है कि पुरुष इन बातों को समझें और सिंपैथी रखें, न कि कोई इंसेंसिटिव कमेंट करें. खास तौर पर वर्कप्लेस पर महिलाओं के मूड या बिहेवियर को लेकर सवाल करना बिल्कुल गलत है.''

Sep 19, 2025 - 21:30
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टीनएज की चुनौतियों पर बोलीं कुशा कपिला, बोलीं- कई बार लड़कियों को होता है सेल्फ डाउट

सोहा अली खान के पॉडकास्ट 'ऑल अबाउट हर' में एक्ट्रेस और कंटेंट क्रिएटर कुशा कपिला ने टीनएज के दौरान लड़कियों को होने वाली इमोशनल और फिजिकल चुनौतियों पर बात की.

कुशा कपिला का स्टेटमेंट 

कुशा कपिला ने कहा, ''प्यूबर्टी यानी टीनएज का समय एक लड़की के लिए बेहद नाजुक होता है. यह वह समय होता है, जब उनका चेहरा, शरीर और पूरी बनावट बदलने लगती है. कोई लड़की अपने दोस्तों से पहले ही डिवेलप हो जाती है, तो कोई बाद में. इस इनिक्वालटी की वजह से कई बार लड़कियों को एम्बैरेस्मेंट, डिस्कम्फर्ट या सेल्फ-डाउट महसूस होता है.''

कुशा ने अपने टीनएज समय की भी बात करी

उन्होंने बताया किया कि जब वह केवल 10 या 11 साल की थीं, तब उनका शरीर बाकी दोस्तों की तुलना में ज्यादा मैच्योर दिखने लगा था. इस कारण वे खुद को लेकर बहुत कॉशस रहने लगी थीं.

उन्होंने कहा, ''टीनएज में बच्चों को बहुत ध्यान देना पड़ता है कि वे किसके साथ समय बिता रहे हैं और किनसे बातें कर रहे हैं. यह उम्र बेहद सेंसिटिव होती है और थोड़ा भी गलत इफेक्ट उन्हें गहराई तक इफेक्ट कर सकता है. समाज में अक्सर लड़कियों की बढ़ती उम्र के साथ उन पर नजर रखने वाली निगाहें बढ़ जाती हैं, जिससे वे ज्यादा सतर्क हो जाती हैं.''

 
 
 
 
 
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कुशा ने बताया कि जब वे छुट्टियों में गोवा गई थीं, तो उन्होंने कुछ लड़कियों से अपनी उम्र छिपाकर खुद को दो साल बड़ा बताया, क्योंकि उनका शरीर पहले ही मैच्योर हो गया था.

कुशा ने आगे एक इम्पोर्टेन्ट टॉपिक पर कि बात

कुशा ने आगे बताया, ''आज भी लड़कियों को अपने शरीर को लेकर बहुत सारी उलझनें होती हैं. मेरा एक पेज है, जहां स्कूल जाने वाली लड़कियां पूछती हैं कि यूनिफॉर्म के साथ क्या पहनना चाहिए. आज भी एजुकेशन सिस्टम एंड फैमिलीज़ में ऐसे टॉपिक्स पर खुलकर बात नहीं की जाती. लड़कियां इन जरूरी जानकारियों के लिए इंटरनेट या सोशल मीडिया का सहारा ले रही हैं, जो चिंता का टॉपिक है.''

कुशा कपिला ने महिलाओं के हार्मोनल साइकिल और उससे जुड़ी परेशानियों के बारे में भी बात की

उन्होंने कहा, ''एक महिला की जिंदगी में महीनेभर में सिर्फ 4-5 दिन ऐसे होते हैं जब वह खुद को पूरी तरह कॉमन महसूस करती है. बाकी समय वह या तो पीरियड्स के दर्द, मूड स्विंग्स, या फिर पीसीओडी जैसी समस्याओं से जूझ रही होती है. ऐसे में यह जरूरी है कि पुरुष इन बातों को समझें और सिंपैथी रखें, न कि कोई इंसेंसिटिव कमेंट करें. खास तौर पर वर्कप्लेस पर महिलाओं के मूड या बिहेवियर को लेकर सवाल करना बिल्कुल गलत है.''

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