Samrajya Review: 'केजीएफ' की सस्ती कॉपी निकली विजय देवराकोंडा की 'साम्राज्य', एक्टर का बढ़िया परफॉर्मेंस नहीं बचा पाया

फिल्म को तेलुगु में किंगडम नाम से बनाया गया और हिंदी में साम्राज्य नाम से रिलीज किया गया. ऐसा क्यों किया गया, ये समझ से परे है क्योंकि हिंदी दर्शक भी किंगडम का मतलब समझ ही जाते. इस फिल्म को बिल्कुल जीरो मार्केटिंग के साथ रिलीज किया गया.  हिंदी में शोज भी काफी कम थे. शायद मेकर्स को हिंदी बेल्ट से ना तो ज्यादा उम्मीद थी और शायद ना ही वो दिलचस्पी क्योंकि कोशिश तो की जी जा सकती थी या फिर ऐसा भी हो सकता है कि उन्हें पहले से पता था कि फिल्म में वो दम नहीं तो कोशिश और पैसा खर्च नहीं किया गया. कहानी- इस फिल्म की कहानी शुरू होती है 1920 से जब एक कबीले के लोगों पर अंग्रेज हमला कर देते हैं, उनके राजा को मार देते हैं, और बचे हुए बच्चों को श्रीलंका जाना पड़ता है. उनसे कहा जाता है कि एक दिन एक राजा आएगा जो तुम्हें बचाएगा. श्रीलंका उन्हें अपनाता नहीं, इंडिया वो वापस आ नहीं सकते, ऐसे में वो स्मगलर्स के गुलाम बनकर रहते हैं और उनका अपना ही एक द्वीप है जहां के अपने नियम कायदे हैं.  70 साल बाद सुरी यानी विजय देवराकोंडा नाम का पुलिस कांस्टेबल अपने भाई को ढूंढता हुआ इन तक पहुंचता है. वो कैसे पहुंचता है, इस बीच क्या क्या होता है, यही इस फिल्म में दिखाने की कोशिश की गई है. जी हां कोशिश की गई है, दिखा नहीं पाए हैं. कैसी है फिल्म- इस फिल्म का फर्स्ट हाफ ठीक लगता है, लोकेशन अच्छी हैं. शूट अच्छा हुआ है लेकिन जैसे जैसे फिल्म आगे बढ़ती है. स्क्रीनप्ले आपके सब्र का इम्तिहान लेने लगता है. आपको लगता है ये क्या हो रहा है, क्यों हो रहा है और खत्म क्यों नहीं हो रहा. बस कुछ भी चले जा रहा है, लोग मारे जा रहे हैं, मार रहे हैं, सैयारा देखकर लोग वैसे रोए, यहां आप इसलिए रोते हैं कि फिल्म इतनी खराब लगती है, और इसकी तो रील बनाकर वायरल भी नहीं हो पाएंगे. कुल मिलाकर इस फिल्म का स्क्रीनप्ले इतना खराब हो कि फिल्म में अगर कुछ अच्छा है तो वो भी बुरा लगने लगता है. ये आपको केजीएफ की सस्ती कॉपी लगने लगती है. विजय का अच्छा परफॉर्मेंस भी फिल्म को बचा नहीं पाता क्योंकि अब जब तक कहानी में दम नहीं है. कुछ नहीं हो सकता, स्टार पावर कुछ नहीं कर पाती और इस फिल्म के साथ भी यही होता है. एक्टिंग- विजय देवराकोंडा का काम अच्छा है. वो अच्छे लगे भी हैं. उनकी एक्टिंग में गहराई दिखती है. वो इस फिल्म की इकलौती अच्छी चीज हैं लेकिन खराब स्क्रीनप्ले के आगे उनकी एक्टिंग कुछ नहीं कर पाती. विजय के भाई के रोल में सत्यदेव ठीक लगे हैं. भाग्यश्री बोरसे ने अच्छा काम किया है. वेंकिटेश वीपी का काम बढ़िया है. एक्टर सब ठीक हैं लेकिन ये फिल्म कहानी में मार खा जाती है. राइटिंग और डायरेक्शन- गौतम तिन्ननुरी ने फिल्म को लिखा और डायरेक्ट किया है. वो जर्सी जैसी फिल्म बना चुके हैं जिसका हिंदी रीमेक भी बना था. यहां वो राइटिंग में मार खा गए. फिल्म का स्केल बढ़ा है लेकिन स्क्रीनप्ले भी अच्छा होना चाहिए था. म्यूजिक- अनिरुद्ध रविचंदर का म्यूजिक ठीक लगता है लेकिन ऐसा लगा जैसे ऐसी फिल्म में उनका म्यूजिक वेस्ट हो गया कुल मिलाकर ये फिल्म वक्त की बर्बादी है. रेटिंग- 2 स्टार्स

Aug 2, 2025 - 02:30
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Samrajya Review: 'केजीएफ' की सस्ती कॉपी निकली विजय देवराकोंडा की 'साम्राज्य', एक्टर का बढ़िया परफॉर्मेंस नहीं बचा पाया

फिल्म को तेलुगु में किंगडम नाम से बनाया गया और हिंदी में साम्राज्य नाम से रिलीज किया गया. ऐसा क्यों किया गया, ये समझ से परे है क्योंकि हिंदी दर्शक भी किंगडम का मतलब समझ ही जाते. इस फिल्म को बिल्कुल जीरो मार्केटिंग के साथ रिलीज किया गया. 

हिंदी में शोज भी काफी कम थे. शायद मेकर्स को हिंदी बेल्ट से ना तो ज्यादा उम्मीद थी और शायद ना ही वो दिलचस्पी क्योंकि कोशिश तो की जी जा सकती थी या फिर ऐसा भी हो सकता है कि उन्हें पहले से पता था कि फिल्म में वो दम नहीं तो कोशिश और पैसा खर्च नहीं किया गया.

कहानी- इस फिल्म की कहानी शुरू होती है 1920 से जब एक कबीले के लोगों पर अंग्रेज हमला कर देते हैं, उनके राजा को मार देते हैं, और बचे हुए बच्चों को श्रीलंका जाना पड़ता है. उनसे कहा जाता है कि एक दिन एक राजा आएगा जो तुम्हें बचाएगा. श्रीलंका उन्हें अपनाता नहीं, इंडिया वो वापस आ नहीं सकते, ऐसे में वो स्मगलर्स के गुलाम बनकर रहते हैं और उनका अपना ही एक द्वीप है जहां के अपने नियम कायदे हैं. 

70 साल बाद सुरी यानी विजय देवराकोंडा नाम का पुलिस कांस्टेबल अपने भाई को ढूंढता हुआ इन तक पहुंचता है. वो कैसे पहुंचता है, इस बीच क्या क्या होता है, यही इस फिल्म में दिखाने की कोशिश की गई है. जी हां कोशिश की गई है, दिखा नहीं पाए हैं.

कैसी है फिल्म- इस फिल्म का फर्स्ट हाफ ठीक लगता है, लोकेशन अच्छी हैं. शूट अच्छा हुआ है लेकिन जैसे जैसे फिल्म आगे बढ़ती है. स्क्रीनप्ले आपके सब्र का इम्तिहान लेने लगता है. आपको लगता है ये क्या हो रहा है, क्यों हो रहा है और खत्म क्यों नहीं हो रहा. बस कुछ भी चले जा रहा है, लोग मारे जा रहे हैं, मार रहे हैं, सैयारा देखकर लोग वैसे रोए, यहां आप इसलिए रोते हैं कि फिल्म इतनी खराब लगती है, और इसकी तो रील बनाकर वायरल भी नहीं हो पाएंगे.

कुल मिलाकर इस फिल्म का स्क्रीनप्ले इतना खराब हो कि फिल्म में अगर कुछ अच्छा है तो वो भी बुरा लगने लगता है. ये आपको केजीएफ की सस्ती कॉपी लगने लगती है. विजय का अच्छा परफॉर्मेंस भी फिल्म को बचा नहीं पाता क्योंकि अब जब तक कहानी में दम नहीं है. कुछ नहीं हो सकता, स्टार पावर कुछ नहीं कर पाती और इस फिल्म के साथ भी यही होता है.

एक्टिंग- विजय देवराकोंडा का काम अच्छा है. वो अच्छे लगे भी हैं. उनकी एक्टिंग में गहराई दिखती है. वो इस फिल्म की इकलौती अच्छी चीज हैं लेकिन खराब स्क्रीनप्ले के आगे उनकी एक्टिंग कुछ नहीं कर पाती. विजय के भाई के रोल में सत्यदेव ठीक लगे हैं. भाग्यश्री बोरसे ने अच्छा काम किया है. वेंकिटेश वीपी का काम बढ़िया है. एक्टर सब ठीक हैं लेकिन ये फिल्म कहानी में मार खा जाती है.

राइटिंग और डायरेक्शन- गौतम तिन्ननुरी ने फिल्म को लिखा और डायरेक्ट किया है. वो जर्सी जैसी फिल्म बना चुके हैं जिसका हिंदी रीमेक भी बना था. यहां वो राइटिंग में मार खा गए. फिल्म का स्केल बढ़ा है लेकिन स्क्रीनप्ले भी अच्छा होना चाहिए था.

म्यूजिक- अनिरुद्ध रविचंदर का म्यूजिक ठीक लगता है लेकिन ऐसा लगा जैसे ऐसी फिल्म में उनका म्यूजिक वेस्ट हो गया

कुल मिलाकर ये फिल्म वक्त की बर्बादी है.

रेटिंग- 2 स्टार्स

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