वैजयंतीमाला का सरेआम नरगिस ने बनाया था मजाक तो आंखों से छलक पड़े थे आंसू, जानें किस्सा
भारतीय सिनेमा की चमकती हुई कई कहानियों के बीच कुछ ऐसे किस्से भी होते हैं जो पर्दे के पीछे छुपे संघर्ष, जादुई कहानी और सच्चाई को उजागर करते हैं. वैजयंतीमाला, जो 50-60 के दशक की सबसे पॉपुलर एक्ट्रेसेस में से एक थीं, सिर्फ अपनी अदाकारी और नृत्य कला के लिए ही नहीं बल्कि अपनी सादगी के लिए भी जानी जाती हैं. वैजयंतीमाला ने जिस समय फिल्मी दुनिया में कदम रखा था, उस वक्त सुरैया, नरगिस और राज कपूर जैसे टॉप स्टार्स का बोलबाला हुआ करता था. ऐसे में अपनी पहचान बनाना बिल्कुल भी आसान नहीं था. एक्ट्रेस ने अपनी आत्मकथा 'बॉन्डिंग: एक मेमोयर' में नरगिस से अपनी एक मुलाकात का जिक्र किया, जो दिल्ली के एक इवेंट में हुई थी. जब पहली बार राज-नरगिस से मिली थीं वैजयंतीमाला अपनी आत्मकथा में वैजयंतीमाला बाली ने लिखा- 'राज कपूर, नरगिस, सुरैया और अन्य कई कलाकार इस इवेंट में मौजूद थे. पहली बार मैं फिल्म बिरादरी का हिस्सा बनी थी और उनके साथ बातचीत की. हे भगवान! इतने महान सितारों के बीच देखा जाना अविश्वसनीय था. इस दौरान मेरा सामना कुछ कड़वे सच से भी हुआ. लोगों से बातचीत के बाद हमें ग्रुप फोटोग्राफ के लिए पोज देना था. बहुत सारे लोग दौड़ते हुए आए और मुझसे ऑटोग्राफ मांगने लगे.' उन्होंने आगे लिखा- 'मैंने नरगिस को राज कपूर से ये कहते हुए सुना कि वो मेरे पास जाएं और मुझे ऑटोग्राफ न देने के लिए कहें. उन्होंने उनकी बात मानी और सीधा मेरे पास उनका मैसेज लेकर आ गए. मैंने सिर्फ सिर हिला दिया, लेकिन मैं इस रवैये से काफी हैरान थी. ये राज और नरगिस के साथ मेरी पहली मुलाकात थी.' नरगिस ने सरेआम 'खंभा' कहकर उड़ाया था मजाकये किस्सा अन्नू कपूर ने अपने एक शो में भी सुनाया था. उन्होंने बताया कि वैजयंती माला काफी लंबी थीं. जब इवेंट में ग्रुप फोटो के लिए सभी खड़े थे, तभी नरगिस ने वैजयंती माला को देखकर कहा- 'वैजयंती बहुत लंबी है, एकदम खंभे, पेड़ की तरह है.' ये सुनकर उनकी आंखों में आंसू आ गए और उस ग्रुप फोटोग्राफ में वो अपने घुटने मोड़कर खड़ी हो गईं. वो घर गईं तो काफी उदास थीं. तब उनकी मां ने उन्हें समझाया कि तुम किसी की बात पर ध्यान न दो, अपना काम ईमानदारी से करती जाओ. तुम्हारा काम ही उन लोगों को तुम्हारा जवाब होगा.' वैजयंतीमाला ने ठुकरा दिया था फिल्मफेयर अवॉर्ड13 अगस्त 1936 को मद्रास (अब चेन्नई) में जन्मी वैजयंतीमाला ने 'नागिन', 'देवदास', 'मधुमती', 'संगम', और 'साधना' जैसी फिल्मों में दमदार अभिनय किया और दर्शकों के बीच अपनी खास जगह बनाई. 'देवदास' में उन्होंने चंद्रमुखी का किरदार निभाया, जिसे करने से नरगिस, बीना रॉय, और मीना कुमारी तक ने मना कर दिया था. इस किरदार के लिए उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया क्योंकि उन्हें लगा कि ये अवॉर्ड सपोर्टिंग एक्ट्रेस के लिए नहीं बल्कि लीड एक्ट्रेस के लिए होना चाहिए. राजनीति में खूब एक्टिव रहीं वैजयंतीमाला वैजयंतीमाला के फिल्मी करियर में उन्हें पांच फिल्मफेयर अवॉर्ड और 1968 में भारत सरकार ने पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया. वैजयंतीमाला ने फिल्मों में सिर्फ एक्टिंग ही नहीं की, बल्कि कोरियोग्राफर और प्रोड्यूसर के तौर पर भी अपना योगदान दिया. 1982 में उन्होंने तमिल फिल्म 'कथोदुथन नान पेसुवेन' का को-प्रोड्यूस किया. इसके अलावा उन्होंने 1984 में राजनीति में भी कदम रखा और सांसद बनीं. बाद में उन्होंने कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थामा और तमिलनाडु की राजनीति में सक्रिय रहीं.

भारतीय सिनेमा की चमकती हुई कई कहानियों के बीच कुछ ऐसे किस्से भी होते हैं जो पर्दे के पीछे छुपे संघर्ष, जादुई कहानी और सच्चाई को उजागर करते हैं. वैजयंतीमाला, जो 50-60 के दशक की सबसे पॉपुलर एक्ट्रेसेस में से एक थीं, सिर्फ अपनी अदाकारी और नृत्य कला के लिए ही नहीं बल्कि अपनी सादगी के लिए भी जानी जाती हैं.
वैजयंतीमाला ने जिस समय फिल्मी दुनिया में कदम रखा था, उस वक्त सुरैया, नरगिस और राज कपूर जैसे टॉप स्टार्स का बोलबाला हुआ करता था. ऐसे में अपनी पहचान बनाना बिल्कुल भी आसान नहीं था. एक्ट्रेस ने अपनी आत्मकथा 'बॉन्डिंग: एक मेमोयर' में नरगिस से अपनी एक मुलाकात का जिक्र किया, जो दिल्ली के एक इवेंट में हुई थी.
जब पहली बार राज-नरगिस से मिली थीं वैजयंतीमाला
अपनी आत्मकथा में वैजयंतीमाला बाली ने लिखा- 'राज कपूर, नरगिस, सुरैया और अन्य कई कलाकार इस इवेंट में मौजूद थे. पहली बार मैं फिल्म बिरादरी का हिस्सा बनी थी और उनके साथ बातचीत की. हे भगवान! इतने महान सितारों के बीच देखा जाना अविश्वसनीय था. इस दौरान मेरा सामना कुछ कड़वे सच से भी हुआ. लोगों से बातचीत के बाद हमें ग्रुप फोटोग्राफ के लिए पोज देना था. बहुत सारे लोग दौड़ते हुए आए और मुझसे ऑटोग्राफ मांगने लगे.'
उन्होंने आगे लिखा- 'मैंने नरगिस को राज कपूर से ये कहते हुए सुना कि वो मेरे पास जाएं और मुझे ऑटोग्राफ न देने के लिए कहें. उन्होंने उनकी बात मानी और सीधा मेरे पास उनका मैसेज लेकर आ गए. मैंने सिर्फ सिर हिला दिया, लेकिन मैं इस रवैये से काफी हैरान थी. ये राज और नरगिस के साथ मेरी पहली मुलाकात थी.'
नरगिस ने सरेआम 'खंभा' कहकर उड़ाया था मजाक
ये किस्सा अन्नू कपूर ने अपने एक शो में भी सुनाया था. उन्होंने बताया कि वैजयंती माला काफी लंबी थीं. जब इवेंट में ग्रुप फोटो के लिए सभी खड़े थे, तभी नरगिस ने वैजयंती माला को देखकर कहा- 'वैजयंती बहुत लंबी है, एकदम खंभे, पेड़ की तरह है.' ये सुनकर उनकी आंखों में आंसू आ गए और उस ग्रुप फोटोग्राफ में वो अपने घुटने मोड़कर खड़ी हो गईं. वो घर गईं तो काफी उदास थीं. तब उनकी मां ने उन्हें समझाया कि तुम किसी की बात पर ध्यान न दो, अपना काम ईमानदारी से करती जाओ. तुम्हारा काम ही उन लोगों को तुम्हारा जवाब होगा.'
वैजयंतीमाला ने ठुकरा दिया था फिल्मफेयर अवॉर्ड
13 अगस्त 1936 को मद्रास (अब चेन्नई) में जन्मी वैजयंतीमाला ने 'नागिन', 'देवदास', 'मधुमती', 'संगम', और 'साधना' जैसी फिल्मों में दमदार अभिनय किया और दर्शकों के बीच अपनी खास जगह बनाई. 'देवदास' में उन्होंने चंद्रमुखी का किरदार निभाया, जिसे करने से नरगिस, बीना रॉय, और मीना कुमारी तक ने मना कर दिया था. इस किरदार के लिए उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया क्योंकि उन्हें लगा कि ये अवॉर्ड सपोर्टिंग एक्ट्रेस के लिए नहीं बल्कि लीड एक्ट्रेस के लिए होना चाहिए.
राजनीति में खूब एक्टिव रहीं वैजयंतीमाला
वैजयंतीमाला के फिल्मी करियर में उन्हें पांच फिल्मफेयर अवॉर्ड और 1968 में भारत सरकार ने पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया. वैजयंतीमाला ने फिल्मों में सिर्फ एक्टिंग ही नहीं की, बल्कि कोरियोग्राफर और प्रोड्यूसर के तौर पर भी अपना योगदान दिया. 1982 में उन्होंने तमिल फिल्म 'कथोदुथन नान पेसुवेन' का को-प्रोड्यूस किया. इसके अलावा उन्होंने 1984 में राजनीति में भी कदम रखा और सांसद बनीं. बाद में उन्होंने कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थामा और तमिलनाडु की राजनीति में सक्रिय रहीं.
What's Your Reaction?






