रितुपर्णो घोष: वो डायरेक्टर जिसने खुले तौर पर बताया था खुद को समलैंगिक, महिला बनने के लिए करवाई थी सर्जरी

भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में कुछ ऐसे कलाकार हैं, जिन्हें उनकी फिल्मों के साथ-साथ उनके विचारों और तरीके के लिए भी याद रखा जाता है. रितुपर्णो घोष ऐसे ही खास कलाकार थे. उन्होंने सिर्फ अच्छी फिल्में ही नहीं बनाई, बल्कि अपने निजी जीवन के बारे में भी सच बोलने की हिम्मत दिखाई. रितुपर्णो ने खुले तौर पर अपनी समलैंगिक पहचान स्वीकार की और एलजीबीटीक्यू समुदाय के अधिकारों के लिए आवाज उठाई. उस समय, जब समलैंगिकता पर बात करना मुश्किल और टेबू माना जाता था, रितुपर्णो ने बिना डर के अपने सच को अपनाया और समाज को सोचने का नया नजरिया दिया.  बंगाली परिवार में हुआ था जन्म रितुपर्णो घोष का जन्म 31 अगस्त 1963 को कोलकाता में एक बंगाली परिवार में हुआ था. उनके पिता, सुनील घोष, डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता और चित्रकार थे, इसलिए रितुपर्णो को कला और सिनेमा का माहौल बचपन से ही मिला. उन्होंने अपनी पढ़ाई इकोनॉमिक्स में की और इसी विषय से मास्टर्स किया, लेकिन उनकी दिलचस्पी हमेशा फिल्म और कला में रही. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक कॉपीराइटर के रूप में की, जहां उन्होंने अपनी क्रिएटिव सोच से कई बेहतरीन विज्ञापन बनाए. इस प्रतिभा ने उन्हें जल्दी ही सिनेमा की ओर खींच लिया. 'उनिशे अप्रैल' से मिली पहचान  रितुपर्णो घोष ने 1992 में अपनी पहली फिल्म 'हीरेर अंगति' बनाई थी, लेकिन उन्हें असली पहचान 'उनिशे अप्रैल' से मिली. यह फिल्म महिलाओं की भावनाओं और उनके जटिल रिश्तों को बहुत खूबसूरती से दिखाती थी और इसी कारण इसे बेस्ट फीचर फिल्म का नेशनल अवॉर्ड भी मिला. इसके बाद रितुपर्णो ने कई शानदार फिल्मों का निर्देशन किया, जैसे 'चोखेर बाली', 'रेनकोट', 'दहन', 'तितली', 'द लास्ट लीयर', 'शुभो मुहूर्त', 'बारीवाली'. उन्होंने हिंदी, बंगाली और अंग्रेजी तीनों भाषाओं में काम किया और अपनी फिल्मों के जरिए समाज के महत्वपूर्ण मुद्दों को सामने लाया. खुलकर जीने वाले कलाकार रितुपर्णो घोष की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि उन्होंने खुले तौर पर कहा कि वे समलैंगिक हैं. उस समय लोग इस बारे में खुलकर नहीं बोलते थे, लेकिन रितुपर्णो ने अपनी पहचान को छुपाया नहीं और एलजीबीटीक्यू समुदाय के लिए आवाज उठाई. वे अक्सर महिलाओं जैसी पोशाक पहनकर कार्यक्रमों में नजर आते थे और इसे अपने जीवन का एक सामान्य हिस्सा मानते थे. 49 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए महिला बनने के लिए रितुपर्णो ने कई सर्जरी करवाई और हॉर्मोन थेरेपी भी ली, जिससे उनके शरीर पर बुरा असर पड़ा और उनकी सेहत खराब हो गई. 30 मई 2013 को सिर्फ 49 साल की उम्र में उनका हार्ट अटैक के कारण निधन हो गया. उनके जाने से बंगाली सिनेमा और पूरे भारतीय फिल्म जगत में शोक फैल गया. उनके अंतिम संस्कार में बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी समेत कई बड़े लोग मौजूद रहे. रितुपर्णो ने अपने फिल्मी करियर में 12 राष्ट्रीय पुरस्कार जीते. उन्होंने फिल्मों में समलैंगिकता जैसे मुद्दों को खूबसूरती से दिखाया. उनका यह हुनर और साहस युवाओं के लिए प्रेरणा देने वाला है.

Aug 30, 2025 - 17:30
 0
रितुपर्णो घोष: वो डायरेक्टर जिसने खुले तौर पर बताया था खुद को समलैंगिक, महिला बनने के लिए करवाई थी सर्जरी

भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में कुछ ऐसे कलाकार हैं, जिन्हें उनकी फिल्मों के साथ-साथ उनके विचारों और तरीके के लिए भी याद रखा जाता है. रितुपर्णो घोष ऐसे ही खास कलाकार थे. उन्होंने सिर्फ अच्छी फिल्में ही नहीं बनाई, बल्कि अपने निजी जीवन के बारे में भी सच बोलने की हिम्मत दिखाई.

रितुपर्णो ने खुले तौर पर अपनी समलैंगिक पहचान स्वीकार की और एलजीबीटीक्यू समुदाय के अधिकारों के लिए आवाज उठाई. उस समय, जब समलैंगिकता पर बात करना मुश्किल और टेबू माना जाता था, रितुपर्णो ने बिना डर के अपने सच को अपनाया और समाज को सोचने का नया नजरिया दिया. 

बंगाली परिवार में हुआ था जन्म

रितुपर्णो घोष का जन्म 31 अगस्त 1963 को कोलकाता में एक बंगाली परिवार में हुआ था. उनके पिता, सुनील घोष, डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता और चित्रकार थे, इसलिए रितुपर्णो को कला और सिनेमा का माहौल बचपन से ही मिला.

उन्होंने अपनी पढ़ाई इकोनॉमिक्स में की और इसी विषय से मास्टर्स किया, लेकिन उनकी दिलचस्पी हमेशा फिल्म और कला में रही. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक कॉपीराइटर के रूप में की, जहां उन्होंने अपनी क्रिएटिव सोच से कई बेहतरीन विज्ञापन बनाए. इस प्रतिभा ने उन्हें जल्दी ही सिनेमा की ओर खींच लिया.

'उनिशे अप्रैल' से मिली पहचान 

रितुपर्णो घोष ने 1992 में अपनी पहली फिल्म 'हीरेर अंगति' बनाई थी, लेकिन उन्हें असली पहचान 'उनिशे अप्रैल' से मिली. यह फिल्म महिलाओं की भावनाओं और उनके जटिल रिश्तों को बहुत खूबसूरती से दिखाती थी और इसी कारण इसे बेस्ट फीचर फिल्म का नेशनल अवॉर्ड भी मिला.

इसके बाद रितुपर्णो ने कई शानदार फिल्मों का निर्देशन किया, जैसे 'चोखेर बाली', 'रेनकोट', 'दहन', 'तितली', 'द लास्ट लीयर', 'शुभो मुहूर्त', 'बारीवाली'. उन्होंने हिंदी, बंगाली और अंग्रेजी तीनों भाषाओं में काम किया और अपनी फिल्मों के जरिए समाज के महत्वपूर्ण मुद्दों को सामने लाया.


खुलकर जीने वाले कलाकार

रितुपर्णो घोष की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि उन्होंने खुले तौर पर कहा कि वे समलैंगिक हैं. उस समय लोग इस बारे में खुलकर नहीं बोलते थे, लेकिन रितुपर्णो ने अपनी पहचान को छुपाया नहीं और एलजीबीटीक्यू समुदाय के लिए आवाज उठाई. वे अक्सर महिलाओं जैसी पोशाक पहनकर कार्यक्रमों में नजर आते थे और इसे अपने जीवन का एक सामान्य हिस्सा मानते थे.

49 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए

महिला बनने के लिए रितुपर्णो ने कई सर्जरी करवाई और हॉर्मोन थेरेपी भी ली, जिससे उनके शरीर पर बुरा असर पड़ा और उनकी सेहत खराब हो गई. 30 मई 2013 को सिर्फ 49 साल की उम्र में उनका हार्ट अटैक के कारण निधन हो गया. उनके जाने से बंगाली सिनेमा और पूरे भारतीय फिल्म जगत में शोक फैल गया. उनके अंतिम संस्कार में बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी समेत कई बड़े लोग मौजूद रहे.

रितुपर्णो ने अपने फिल्मी करियर में 12 राष्ट्रीय पुरस्कार जीते. उन्होंने फिल्मों में समलैंगिकता जैसे मुद्दों को खूबसूरती से दिखाया. उनका यह हुनर और साहस युवाओं के लिए प्रेरणा देने वाला है.

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow