सड़क से शुरू किया सफर फिर सुरमा भोपाली बन रचा इतिहास! कुछ ऐसी रही जगदीप की जर्नी

How Did Jagdeep Became Surma Bhopali: हिंदी सिनेमा के ब्लैक एंड वाइट दौर के मशहूर कॉमेडियन जगदीप किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. उनकी अदाकारी इतनी शानदार थी कि फिल्मों में उनके लिए खास किरदार रचे जाते थे. ऐसा ही एक किस्सा है 1975 में आई फिल्म 'शोले' का जिसमें 'सूरमा भोपाली' का किरदार काफी लोकप्रिय रहा. कैसे हुए सूरमा भोपाली इतने लोकप्रिय?1975 में रिलीज हुई फिल्म शोले में सूरमा भोपाली का अनोखा किरदार देखा गया. लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि फिल्म के स्क्रिप्ट में ये किरदार पहले था ही नहीं. बाद में फिल्ममेकर्स सलीम और जावेद अख्तर की जोड़ी ने हल्की-फुल्की कॉमेडी के लिए इस किरदार को रचा. बाद में जगदीप को इस किरदार से ही लोग जानने लगे. इस किरदार को निभाकर अभिनेता ने न केवल फिल्म का कॉमेडी का तड़का लगाया बल्कि इसे जीवन भर के लिए यादगार बना दिया. 'सूरमा भोपाली' बनने से पहले जगदीप ने तय किया लंबा सफरजगदीप ऐसे कलाकार थे कि वो जहां कही भी जाते अपनी छाप छोड़ आते थे. अपने डायलॉग, चेहरे के एक्सप्रेशन और चुटिले अंदाज से दर्शकों के दिलों में उतरना उन्हें बखूबी आता था. पिता के निधन के बाद जगदीप ने महज 6 साल की उम्र से काम करना शुरू कर दिया था. उनकी मां मुंबई के अनाथालय में रोटियां बनाकर गुजारा करती थीं. अपनी मां की मेहनत देख दिग्गज कलाकार ने भी उनके मदद के लिए छोटी उम्र से काम करना शुरू कर दिया. वो मुंबई की सड़कों पर कंघी, साबुन और खिलौने बेचते थे. समान बेचने के दौरान एक शख्स की नजर उन पर पड़ी. वो कोई और नहीं बल्कि बी.आर चोपड़ा साहब थे. उस वक्त फिल्ममेकर अपनी फिल्म 'अफसाना' के लिए चाइल्ड आर्टिस्ट तलाश रहे थे.इस फिल्म में उन्होंने सिर्फ इसलिए काम किया, क्योंकि सामान बेचकर वह दिनभर में सिर्फ एक या डेढ़ रुपया कमा पाते थे, जबकि सेट पर उन्हें सिर्फ ताली बजाने के तीन रुपए मिल रहे थे. यहीं से उनका फिल्मी सफर शुरू हुआ. इसके बाद उन्होंने 'दो बीघा जमीन', 'मुन्ना', 'हम पंछी एक डाल के', और, 'आर पार' जैसी फिल्मों में छोटे-छोटे, लेकिन यादगार रोल किए. 'हम पंछी एक डाल के' में शानदार अभिनय के लिए उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी सम्मानित किया था. एवीएम प्रोडक्शन ने उन्हें 'भाभी', 'बरखा' और 'बिंदिया' जैसी फिल्मों में हीरो के तौर पर लॉन्च किया. इन फिल्मों में उन्होंने सीधे-सादे लड़के का रोल किया. फिल्म 'भाभी' का गाना 'चल उड़ जा रे पंछी' आज भी लोगों को याद है, जिसमें वह अभिनेत्री नंदा के साथ दिखाई दिए थे. लेकिन जब उन्होंने शम्मी कपूर की फिल्म 'ब्रह्मचारी' में कॉमेडी की, तो दर्शकों ने माना कि वह हीरो से ज्यादा एक जबरदस्त हास्य अभिनेता हैं. इसके बाद उन्होंने कॉमेडियन के रूप में ही अपनी पहचान बना ली. 60 और 70 के दशक में हास्य का दूसरा नाम थे जगदीपजगदीप ने 'तीन बहुरानियां', 'खिलौना', 'जीने की राह','गोरा और काला', 'इंसानियत','चला मुरारी हीरो बनने' जैसी कई फिल्मों में अपने परफेक्ट कॉमिक टाइमिंग के जरिए दर्शकों का मनोरंजन किया.  उन्होंने फिल्मों में खलनायक का किरदार भी निभाया. 'शिकवा', 'धोबी डॉक्टर', 'मंदिर-मस्जिद' जैसी फिल्मों में सीरियस और नेगेटिव रोल भी किए. उन्हें रामसे ब्रदर्स की हॉरर फिल्मों का भी पसंदीदा चेहरा माना जाता था. 'पुराना मंदिर' और '3डी सामरी' में उनके किरदार को खूब पसंद किया गया. 70 साल तक फिल्मों से जुड़े रहने के बाद जगदीप ने 2017 में अपनी आखिरी फिल्म 'मस्ती नहीं सस्ती' में काम किया, जिसमें उनके साथ जॉनी लीवर, कादर खान, शक्ति कपूर और रवि किशन जैसे कलाकार थे. 8 जुलाई 2020 को दुनिया को अलविदा कह गए सूरमा भोपाली जगदीप का असली नाम सैयद इश्तियाक अहमद जाफरी था. उनका जन्म 29 मार्च 1939 को मध्य प्रदेश के दतिया नाम के छोटे से कस्बे में हुआ था. उनके पिताजी बैरिस्टर थे. पिता के देहांत के बाद घर की हालत काफी खराब हो गई जिस वजह से उन्हें बहुत ही कम उम्र से काम करना पड़ा. दिग्गज अभिनेता ने 8 जुलाई 2020 को 81 साल की उम्र में मुंबई स्थित अपने घर में आखिरी सांसें ली.

Jul 7, 2025 - 19:30
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सड़क से शुरू किया सफर फिर सुरमा भोपाली बन रचा इतिहास! कुछ ऐसी रही जगदीप की जर्नी

How Did Jagdeep Became Surma Bhopali: हिंदी सिनेमा के ब्लैक एंड वाइट दौर के मशहूर कॉमेडियन जगदीप किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. उनकी अदाकारी इतनी शानदार थी कि फिल्मों में उनके लिए खास किरदार रचे जाते थे. ऐसा ही एक किस्सा है 1975 में आई फिल्म 'शोले' का जिसमें 'सूरमा भोपाली' का किरदार काफी लोकप्रिय रहा.

कैसे हुए सूरमा भोपाली इतने लोकप्रिय?
1975 में रिलीज हुई फिल्म शोले में सूरमा भोपाली का अनोखा किरदार देखा गया. लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि फिल्म के स्क्रिप्ट में ये किरदार पहले था ही नहीं. बाद में फिल्ममेकर्स सलीम और जावेद अख्तर की जोड़ी ने हल्की-फुल्की कॉमेडी के लिए इस किरदार को रचा. बाद में जगदीप को इस किरदार से ही लोग जानने लगे. इस किरदार को निभाकर अभिनेता ने न केवल फिल्म का कॉमेडी का तड़का लगाया बल्कि इसे जीवन भर के लिए यादगार बना दिया.


'सूरमा भोपाली' बनने से पहले जगदीप ने तय किया लंबा सफर
जगदीप ऐसे कलाकार थे कि वो जहां कही भी जाते अपनी छाप छोड़ आते थे. अपने डायलॉग, चेहरे के एक्सप्रेशन और चुटिले अंदाज से दर्शकों के दिलों में उतरना उन्हें बखूबी आता था. पिता के निधन के बाद जगदीप ने महज 6 साल की उम्र से काम करना शुरू कर दिया था.

उनकी मां मुंबई के अनाथालय में रोटियां बनाकर गुजारा करती थीं. अपनी मां की मेहनत देख दिग्गज कलाकार ने भी उनके मदद के लिए छोटी उम्र से काम करना शुरू कर दिया. वो मुंबई की सड़कों पर कंघी, साबुन और खिलौने बेचते थे. समान बेचने के दौरान एक शख्स की नजर उन पर पड़ी. वो कोई और नहीं बल्कि बी.आर चोपड़ा साहब थे.

उस वक्त फिल्ममेकर अपनी फिल्म 'अफसाना' के लिए चाइल्ड आर्टिस्ट तलाश रहे थे.इस फिल्म में उन्होंने सिर्फ इसलिए काम किया, क्योंकि सामान बेचकर वह दिनभर में सिर्फ एक या डेढ़ रुपया कमा पाते थे, जबकि सेट पर उन्हें सिर्फ ताली बजाने के तीन रुपए मिल रहे थे. यहीं से उनका फिल्मी सफर शुरू हुआ.


इसके बाद उन्होंने 'दो बीघा जमीन', 'मुन्ना', 'हम पंछी एक डाल के', और, 'आर पार' जैसी फिल्मों में छोटे-छोटे, लेकिन यादगार रोल किए. 'हम पंछी एक डाल के' में शानदार अभिनय के लिए उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी सम्मानित किया था. एवीएम प्रोडक्शन ने उन्हें 'भाभी', 'बरखा' और 'बिंदिया' जैसी फिल्मों में हीरो के तौर पर लॉन्च किया.

इन फिल्मों में उन्होंने सीधे-सादे लड़के का रोल किया. फिल्म 'भाभी' का गाना 'चल उड़ जा रे पंछी' आज भी लोगों को याद है, जिसमें वह अभिनेत्री नंदा के साथ दिखाई दिए थे. लेकिन जब उन्होंने शम्मी कपूर की फिल्म 'ब्रह्मचारी' में कॉमेडी की, तो दर्शकों ने माना कि वह हीरो से ज्यादा एक जबरदस्त हास्य अभिनेता हैं. इसके बाद उन्होंने कॉमेडियन के रूप में ही अपनी पहचान बना ली.

60 और 70 के दशक में हास्य का दूसरा नाम थे जगदीप
जगदीप ने 'तीन बहुरानियां', 'खिलौना', 'जीने की राह','गोरा और काला', 'इंसानियत','चला मुरारी हीरो बनने' जैसी कई फिल्मों में अपने परफेक्ट कॉमिक टाइमिंग के जरिए दर्शकों का मनोरंजन किया.  उन्होंने फिल्मों में खलनायक का किरदार भी निभाया. 'शिकवा', 'धोबी डॉक्टर', 'मंदिर-मस्जिद' जैसी फिल्मों में सीरियस और नेगेटिव रोल भी किए. उन्हें रामसे ब्रदर्स की हॉरर फिल्मों का भी पसंदीदा चेहरा माना जाता था.

'पुराना मंदिर' और '3डी सामरी' में उनके किरदार को खूब पसंद किया गया. 70 साल तक फिल्मों से जुड़े रहने के बाद जगदीप ने 2017 में अपनी आखिरी फिल्म 'मस्ती नहीं सस्ती' में काम किया, जिसमें उनके साथ जॉनी लीवर, कादर खान, शक्ति कपूर और रवि किशन जैसे कलाकार थे.

8 जुलाई 2020 को दुनिया को अलविदा कह गए सूरमा भोपाली 
जगदीप का असली नाम सैयद इश्तियाक अहमद जाफरी था. उनका जन्म 29 मार्च 1939 को मध्य प्रदेश के दतिया नाम के छोटे से कस्बे में हुआ था. उनके पिताजी बैरिस्टर थे. पिता के देहांत के बाद घर की हालत काफी खराब हो गई जिस वजह से उन्हें बहुत ही कम उम्र से काम करना पड़ा. दिग्गज अभिनेता ने 8 जुलाई 2020 को 81 साल की उम्र में मुंबई स्थित अपने घर में आखिरी सांसें ली.

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