शोले के गब्बर के पास बीवी के हॉस्पिटल के बिल भरने के भी नहीं थे पैसे, कार एक्सीडेंट ने बदल दी थी जिंदगी
अमजद खान हिंदी फिल्मों के सबसे मशहूर विलन में से एक थे. फिल्म शोले में उनके गब्बर सिंह वाले किरदार ने उन्हें रातों-रात स्टार बना दिया और उनकी पहचान हमेशा के लिए बदल दी. उनके बोले गए डायलॉग आज भी लोगों की जुबान पर हैं और हर फिल्म प्रेमी उन्हें याद करता है. शोले की सफलता के बाद अमजद खान का करियर लगातार आगे बढ़ता गया और उन्होंने एक से बढ़कर एक फिल्मों में काम किया. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि रमेश सिप्पी की ये फिल्म साइन करने से ठीक पहले अमजद खान की जिंदगी में एक बुरा दौर आया था. अस्पताल में बिल भरने के लिए नहीं थे पैसे अमजद के बेटे शादाब खान ने टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए एक इंटरव्यू में बताया था कि उनके दिवंगत पिता के पास शादाब के जन्म के बाद अस्पताल का बिल भरने के लिए पैसे नहीं थे. उन्होंने बताया कि उनके पिता अस्पताल नहीं आ रहे थे क्योंकि वे बिल नहीं चुका पा रहे थे. उन्होंने बताया, "उनके पास मेरी मां शहला खान को उस अस्पताल से छुट्टी दिलाने के लिए पैसे नहीं थे जहां मैं पैदा हुआ था. वह रोने लगीं. मेरे पिता अस्पताल नहीं आ रहे थे. उन्हें अपना चेहरा दिखाने में भी शर्म आ रही थी." डायरेक्टर ने की मददशोले पहली फिल्म थी जिससे अमजद को नोटिस किया गया, लेकिन उन्होंने पहले भी कुछ फिल्मों में काम किया था और उनमें से एक डायरेक्टर चेतन आनंद की "हिंदुस्तान की कसम" थी. जब दिवंगत चेतन आनंद को इस संकट के बारे में पता चला, तो वे मदद के लिए दौड़ पड़े. अस्पताल में दी जानी वाली फीस 400 रुपये थी, लेकिन अमजद पैसे नहीं जुटा पाए. उन्होंने बताया, "चेतन आनंद साहब ने उन्हें 400 रुपये दिए ताकि मैं और मेरी मां घर आ सकें." "शोले" ने बदल दी जिंदगीउसी इंटरव्यू में, शादाब ने बताया कि यही वो दिन था जब उनके पिता ने शोले जैसी फिल्म साइन की थी, जो आगे चलकर उनके करियर का टर्निंग पॉइंट साबित हुई. इसी फिल्म ने अमजद खान को इंडस्ट्री में नई पहचान दी और उन्हें गब्बर सिंह के रूप में अमर कर दिया. ‘शोले’ के अलावा अमजद खान ने ‘गंगा की सौगंद’, ‘नटवरलाल, ‘नसीब’, ‘रामगढ़ के शोले’ जैसी कई फिल्मों में काम किया, लेकिन उनका कार एक्सीडेंट भी हुआ था, जिसके बाद उनका वजन बढ़ने लगा. वो काफी समय तक कोमा में भी रहे थे. लेकिन फिर 27 जुलाई 1992 में उनका निधन हो गया.
अमजद खान हिंदी फिल्मों के सबसे मशहूर विलन में से एक थे. फिल्म शोले में उनके गब्बर सिंह वाले किरदार ने उन्हें रातों-रात स्टार बना दिया और उनकी पहचान हमेशा के लिए बदल दी. उनके बोले गए डायलॉग आज भी लोगों की जुबान पर हैं और हर फिल्म प्रेमी उन्हें याद करता है.
शोले की सफलता के बाद अमजद खान का करियर लगातार आगे बढ़ता गया और उन्होंने एक से बढ़कर एक फिल्मों में काम किया. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि रमेश सिप्पी की ये फिल्म साइन करने से ठीक पहले अमजद खान की जिंदगी में एक बुरा दौर आया था.
अस्पताल में बिल भरने के लिए नहीं थे पैसे
अमजद के बेटे शादाब खान ने टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए एक इंटरव्यू में बताया था कि उनके दिवंगत पिता के पास शादाब के जन्म के बाद अस्पताल का बिल भरने के लिए पैसे नहीं थे. उन्होंने बताया कि उनके पिता अस्पताल नहीं आ रहे थे क्योंकि वे बिल नहीं चुका पा रहे थे.
उन्होंने बताया, "उनके पास मेरी मां शहला खान को उस अस्पताल से छुट्टी दिलाने के लिए पैसे नहीं थे जहां मैं पैदा हुआ था. वह रोने लगीं. मेरे पिता अस्पताल नहीं आ रहे थे. उन्हें अपना चेहरा दिखाने में भी शर्म आ रही थी."
डायरेक्टर ने की मदद
शोले पहली फिल्म थी जिससे अमजद को नोटिस किया गया, लेकिन उन्होंने पहले भी कुछ फिल्मों में काम किया था और उनमें से एक डायरेक्टर चेतन आनंद की "हिंदुस्तान की कसम" थी. जब दिवंगत चेतन आनंद को इस संकट के बारे में पता चला, तो वे मदद के लिए दौड़ पड़े. अस्पताल में दी जानी वाली फीस 400 रुपये थी, लेकिन अमजद पैसे नहीं जुटा पाए. उन्होंने बताया, "चेतन आनंद साहब ने उन्हें 400 रुपये दिए ताकि मैं और मेरी मां घर आ सकें."
"शोले" ने बदल दी जिंदगी
उसी इंटरव्यू में, शादाब ने बताया कि यही वो दिन था जब उनके पिता ने शोले जैसी फिल्म साइन की थी, जो आगे चलकर उनके करियर का टर्निंग पॉइंट साबित हुई. इसी फिल्म ने अमजद खान को इंडस्ट्री में नई पहचान दी और उन्हें गब्बर सिंह के रूप में अमर कर दिया.
‘शोले’ के अलावा अमजद खान ने ‘गंगा की सौगंद’, ‘नटवरलाल, ‘नसीब’, ‘रामगढ़ के शोले’ जैसी कई फिल्मों में काम किया, लेकिन उनका कार एक्सीडेंट भी हुआ था, जिसके बाद उनका वजन बढ़ने लगा. वो काफी समय तक कोमा में भी रहे थे. लेकिन फिर 27 जुलाई 1992 में उनका निधन हो गया.
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