कैसे पाकिस्तान के सम्पूर्ण सिंह बने हिंदी सिनेमा के गुलजार, जानें इनकी दिलचस्प कहानी
हिंदी सिनेमा और साहित्य की दुनिया में कुछ नाम ऐसे होते हैं, जो समय के साथ फीके नहीं पड़ते, बल्कि और भी चमकते हैं. गुलजार उन्हीं में से एक हैं. उर्दू, पंजाबी, खड़ीबोली और हिंदी जैसी कई भाषाओं में उन्होंने जो कविताएं, गीत और कहानियां लिखी हैं, वो सीधे दिल में उतर जाती हैं. कल उनका बर्थडे हैं. ऐसे में हम आपको उनकी लाइफ की खासे बातें बताने जा रहे हैं. पाकिस्तान में जन्में थे गुलजार 18 अगस्त 1934 को झेलम (अब पाकिस्तान) में जन्मे गुलजार, जिनका असली नाम सम्पूर्ण सिंह कालरा है., आज भी अपनी सादगी, संवेदनशीलता और शब्दों की गहराई से लोगों को बांध लेते हैं. लेकिन अगर गुलजार की जिंदगी को किसी एक नजरिए से सबसे गहराई से समझा जा सकता है, तो वो है उनकी बेटी मेघना गुलजार का,एक सफल फिल्म निर्देशक के तौर पर पहचान बनाने वाली मेघना (जिनका प्यार का नाम बोस्की है) ने कई बार सार्वजनिक मंचों पर बताया है कि उनके पिता ने सिर्फ एक महान लेखक या गीतकार की भूमिका ही नहीं निभाई, बल्कि एक जिम्मेदार और संवेदनशील अभिभावक की तरह भी जीवन जिया. View this post on Instagram A post shared by GULZAR (@gulzar.official) एक्ट्रेस राखी से रचाई थी शादी गुलजार ने 1973 में अभिनेत्री राखी से शादी की थी. लेकिन जब उनकी बेटी बोस्की केवल एक साल की थीं, तब गुलजार और राखी अलग हो गए. अलग होने के बाद गुलजार ने मेघना की परवरिश में पूरी भूमिका निभाई. जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल 2019 में मेघना ने भावुक होकर कहा था कि उनके पापा ने कभी उन्हें डांटा नहीं, लेकिन अनुशासन हमेशा बनाए रखा. गुलजार खुद मेघना को स्कूल के लिए तैयार करते, उनकी चोटी बनाते, जूते पॉलिश करते और समय निकालकर दोपहर साढ़े तीन बजे स्कूल से लेने भी जाते. बेटी की अकेली की परवरिश गुलजार ने ऐसा कोई काम नहीं छोड़ा जिससे मेघना को मां की कमी महसूस हो. उन्होंने बताया था कि गुलजार ने हमेशा उन्हें आजादी से जीने की छूट दी, लेकिन पढ़ाई को लेकर कभी समझौता नहीं किया. उनका एक ही नियम था, 'पढ़ाई पूरी करो, उसके बाद जो मन करे वो करो..' शायद यही वजह है कि मेघना आज खुद एक सफल निर्देशक हैं, जिन्होंने 'राजी', 'छपाक' और 'सैम बहादुर' जैसी फिल्मों के जरिए अपना हुनर दिखाया. View this post on Instagram A post shared by GULZAR (@gulzar.official) 'बंदिनी' से हुई थी गुलजार के करियर की शुरुआत गुलजार की शायरी, गीत और नज्मों में बंटवारे का दर्द, दिल्ली की गलियों की खुशबू, और गालिब की रचनाओं की छाया मिलती है. उन्होंने खुद एक इंटरव्यू में कहा था कि वे खुद को 'कल्चरली मुसलमान' मानते हैं, क्योंकि उनकी सोच में हिंदी और उर्दू दोनों की मिलावट है. यह बात उनकी लेखनी में भी साफ झलकती है. उनकी शुरुआत बतौर गीतकार 1963 में बिमल रॉय की फिल्म 'बंदिनी' से हुई थी, जिसमें लिखा गया गाना 'मोरा गोरा रंग लइले' आज भी उतना ही मासूम और गहरा लगता है जितना शायद तब लगता होगा. बॉलीवुड के इन गानों ने दी अलग पहचान इसके बाद उन्होंने एक से एक खूबसूरत गीत लिखे. फेहरिस्त बहुत लंबी है लेकिन 'तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा नहीं', 'कजरारे कजरारे' और 'छैंया छैंया' ये ऐसे तीन गाने हैं जो गुलजार की कलम के अलग-अलग रंगों से रूबरू कराते हैं. उनकी लेखनी में दिल्ली की बल्लीमारान की गलियों से लेकर मुंबई की रेलगाड़ियों तक का सफर महसूस होता है.गुलजार की केवल लेखनी ही नहीं, उनकी आवाज भी दमदार है. View this post on Instagram A post shared by GULZAR (@gulzar.official) गुलजार ने टीवी के लिए भी किया काम कई टेलीविजन विज्ञापनों और फिल्मों में उनके बोले डायलॉग किसी कविता की तरह लगते हैं. यही वजह है कि आज भी जब वह मंच पर कुछ बोलते हैं, तो लोग शांत होकर सिर्फ सुनते हैं और कह उठते हैं 'शिकवा नहीं...’ ये भी पढ़ें - महंगी कारें, आलीशान बंगला...अमीरी में स्टार्स को टक्कर देते हैं एल्विश यादव, जानें नेटवर्थ

हिंदी सिनेमा और साहित्य की दुनिया में कुछ नाम ऐसे होते हैं, जो समय के साथ फीके नहीं पड़ते, बल्कि और भी चमकते हैं. गुलजार उन्हीं में से एक हैं. उर्दू, पंजाबी, खड़ीबोली और हिंदी जैसी कई भाषाओं में उन्होंने जो कविताएं, गीत और कहानियां लिखी हैं, वो सीधे दिल में उतर जाती हैं. कल उनका बर्थडे हैं. ऐसे में हम आपको उनकी लाइफ की खासे बातें बताने जा रहे हैं.
पाकिस्तान में जन्में थे गुलजार
18 अगस्त 1934 को झेलम (अब पाकिस्तान) में जन्मे गुलजार, जिनका असली नाम सम्पूर्ण सिंह कालरा है., आज भी अपनी सादगी, संवेदनशीलता और शब्दों की गहराई से लोगों को बांध लेते हैं. लेकिन अगर गुलजार की जिंदगी को किसी एक नजरिए से सबसे गहराई से समझा जा सकता है, तो वो है उनकी बेटी मेघना गुलजार का,एक सफल फिल्म निर्देशक के तौर पर पहचान बनाने वाली मेघना (जिनका प्यार का नाम बोस्की है) ने कई बार सार्वजनिक मंचों पर बताया है कि उनके पिता ने सिर्फ एक महान लेखक या गीतकार की भूमिका ही नहीं निभाई, बल्कि एक जिम्मेदार और संवेदनशील अभिभावक की तरह भी जीवन जिया.
View this post on Instagram
एक्ट्रेस राखी से रचाई थी शादी
गुलजार ने 1973 में अभिनेत्री राखी से शादी की थी. लेकिन जब उनकी बेटी बोस्की केवल एक साल की थीं, तब गुलजार और राखी अलग हो गए. अलग होने के बाद गुलजार ने मेघना की परवरिश में पूरी भूमिका निभाई. जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल 2019 में मेघना ने भावुक होकर कहा था कि उनके पापा ने कभी उन्हें डांटा नहीं, लेकिन अनुशासन हमेशा बनाए रखा. गुलजार खुद मेघना को स्कूल के लिए तैयार करते, उनकी चोटी बनाते, जूते पॉलिश करते और समय निकालकर दोपहर साढ़े तीन बजे स्कूल से लेने भी जाते.
बेटी की अकेली की परवरिश
गुलजार ने ऐसा कोई काम नहीं छोड़ा जिससे मेघना को मां की कमी महसूस हो. उन्होंने बताया था कि गुलजार ने हमेशा उन्हें आजादी से जीने की छूट दी, लेकिन पढ़ाई को लेकर कभी समझौता नहीं किया. उनका एक ही नियम था, 'पढ़ाई पूरी करो, उसके बाद जो मन करे वो करो..' शायद यही वजह है कि मेघना आज खुद एक सफल निर्देशक हैं, जिन्होंने 'राजी', 'छपाक' और 'सैम बहादुर' जैसी फिल्मों के जरिए अपना हुनर दिखाया.
View this post on Instagram
'बंदिनी' से हुई थी गुलजार के करियर की शुरुआत
गुलजार की शायरी, गीत और नज्मों में बंटवारे का दर्द, दिल्ली की गलियों की खुशबू, और गालिब की रचनाओं की छाया मिलती है. उन्होंने खुद एक इंटरव्यू में कहा था कि वे खुद को 'कल्चरली मुसलमान' मानते हैं, क्योंकि उनकी सोच में हिंदी और उर्दू दोनों की मिलावट है. यह बात उनकी लेखनी में भी साफ झलकती है. उनकी शुरुआत बतौर गीतकार 1963 में बिमल रॉय की फिल्म 'बंदिनी' से हुई थी, जिसमें लिखा गया गाना 'मोरा गोरा रंग लइले' आज भी उतना ही मासूम और गहरा लगता है जितना शायद तब लगता होगा.
बॉलीवुड के इन गानों ने दी अलग पहचान
इसके बाद उन्होंने एक से एक खूबसूरत गीत लिखे. फेहरिस्त बहुत लंबी है लेकिन 'तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा नहीं', 'कजरारे कजरारे' और 'छैंया छैंया' ये ऐसे तीन गाने हैं जो गुलजार की कलम के अलग-अलग रंगों से रूबरू कराते हैं. उनकी लेखनी में दिल्ली की बल्लीमारान की गलियों से लेकर मुंबई की रेलगाड़ियों तक का सफर महसूस होता है.गुलजार की केवल लेखनी ही नहीं, उनकी आवाज भी दमदार है.
View this post on Instagram
गुलजार ने टीवी के लिए भी किया काम
कई टेलीविजन विज्ञापनों और फिल्मों में उनके बोले डायलॉग किसी कविता की तरह लगते हैं. यही वजह है कि आज भी जब वह मंच पर कुछ बोलते हैं, तो लोग शांत होकर सिर्फ सुनते हैं और कह उठते हैं 'शिकवा नहीं...’
ये भी पढ़ें -
महंगी कारें, आलीशान बंगला...अमीरी में स्टार्स को टक्कर देते हैं एल्विश यादव, जानें नेटवर्थ
What's Your Reaction?






