क्रिटिक को ‘चुप’ कराने वाली फिल्म ‘ चुप ‘ क्यों गयी ? एक हफ्ते में कमाए दस करोड़ से भी कम
फिल्म २३ सितंबर को सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई। उस दिन सिनेमादिवस मनाया जा रह...
फिल्म २३ सितंबर को सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई। उस दिन सिनेमादिवस मनाया जा रहा था और सस्ते टिकट के चलते दर्शकों की काफी भीड़ देखने को मिली। अपने ओपनिंग डे पर इस फिल्म ने अच्छी कमाई की , दर्शकों को फिल्म अच्छी भी लगी मगर अब क्या यह तो दस करोड़ का भी आंकड़ा नहीं पार करती दिख रही।
सनी देओल और दुलकर सलमान स्टारर फिल्म 23 सितंबर को नेशनल सिनेमा डे के दिन रिलीज हुई थी। इस दिन फिल्म के टिकट सस्ते होने की वजह से कई लोगों ने थिएटर का रुख किया, जिसकी वजह से फिल्म की शुरुआत अच्छी रही। फिल्म देखकर आए लोगों ने चुप की काफी तारीफ की। फिल्म लोगों का दिल जीतने में कामयाब हुई है। मगर कुछ दिनों के कलेक्शन पर नज़र डालें तो यह फिल्म कुछ लाख तक में ही सिमट कर रह गयी है।
फिल्म समीक्षकों ने कहा कि इस फिल्म की समीक्षा तो समीक्षा की समीक्षा करना होगा। फिल्म देखने के बाद कितने लोगों ने तो समीक्षा का तरीका ही बदल दिया। फिल्म के अनुसार देखें तो पिछले कुछ दशक में इस तरह की पहली फिल्म आई जिसने दर्शकों में उत्साह भरा। लोगों ने इस फिल्म के चलते गुरुदत्त की जिंदगी को भी जाना। मगर यह फिल्म न तो अडॉप्टेशन है और न ही बेस्ड ऑन। यह तो एक चरित्र की कल्पना है जो ऐसा करता है। अवसाद में चले गए एक फिल्म मेकर की कहानी जो फिल्म की समीक्षा वैसी नहीं करता जैसी करनी चाहिए, उसकी ह्त्या करता है। रेटिंग देने का भी प्रचलन आजकल चलने लगा है। पांच स्टार ही तय करते हैं कि कोई फिल्म कैसी है ? या फिर कोई काम कैसा है ? आखिर डिजिटल जमाना है तो प्रशंसा भी डिजिटल तरीके से की जाने लगी हैं। लेकिन डिजिटल चीज़ें एक स्ट्रेटेजी के तहत भी तो चल सकती हैं। जैसे ट्रेन सिस्टम , हैशटैग आदि ,जिसे साइबर व सोशल प्लेटफॉर्म से कण्ट्रोल किया जाता है।
कुल मिलाकर 'चुप' की अनोखी कहानी ने दर्शकों को अट्रैक्ट किया है। एक सीरियल किलर की कहानी है जो फिल्म क्रिटिक करने वालों की हत्याएं कर रहा है और उनकी शरीर पर स्टार रेटिंग का निशान छोड़ देता है। अब आगे देखना है ये फिल्म कितने दिनों तक सिनेमाघरों में टिक पाती है। क्योंकि लगातार बड़े बड़े स्टार्स की फ़िल्में भी रिलीज होने की लाइन में हैं। दर्शक कितनी फ़िल्में देखें। उसे फिल्म के साथ साथ अपनी जेब भी तो देखनी है भाई।
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