बतौर अभिनेता कई फिल्मों में काम कर चुके युवराज ने अब अपना कदम लेखन व निर्देशन की ओर बढ़ा दिया है,उनकी कई लघु फिल्में आ चुकी हैं,जिनमे ‘लाली’ व ‘बहार’ को दर्ज़नों फ़िल्म फेस्टिवल में लगाया जा चुका है और ज्यादातर में वो अवार्ड विनिंग रहीं
समय ,समाज व सिनेमा तीनों एक दूसरे के पूरक हैं। साहित्य यदि समाज को अपने पन्नों में दर्ज करता है ,तो सिनेमा उसे पर्दे पर दिखाता है। और सिनेमा का उद्देश्य भी यही होना चाहिए कि वो समाज मे घटने वाली या घटी हुई कहानियों को पर्दे पर लाकर उसे एक बड़े दर्शक वर्ग तक ले जाये,उससे रूबरू कराए।
हम सिनेमा को सिर्फ़ मनोरंजन समझ बैठे हैं। और सिनेमा भी दर्शकों को मनोरंजन परोसने का एक माध्यम समझ बैठा है। इसलिए वो वही बेचने में लगा है,जिसपर दर्शक उछल कूद मचा सके। पार्टी कर सके और हो हल्ला कर सकें। लेखन का महत्व भी इसीलिए कम होता जा रहा,मगर अब लेखन व दमदार विषयवस्तु ली बात उठने लगी है। फिल्में अच्छी लिखी गयी तो वह एक सीमित दर्शक वर्ग तक ही सिमट कर रही गयीं।
मगर अब के सोशल मीडिया व इंटरनेट के दौर में दर्शकों ने कुछ नया व अलग खोजना शुरू किया है,जिससे सिने जगत में एक हलचल मची हुई है।
नए लेखक आ रहे,नए कलेवर की चीजें परोस रहें और दर्शक उसे ओ टी टी इत्यादि जगहों पर देख रहे हैं। युवराज पाराशर भी उन्ही लेखक व निर्देशक में से एक हैं,जो अभिनय के साथ साथ अब लेखन व निर्देशन की दुनिया मे पांव जमा चुके हैं। मूलतः आगरा के रहने वाले युवराज एक मंझे हुए कथक नर्तक( डांसर) भी हैं।
शुरुआत भले ही उन्होंने कुछ फिल्मों में अभिनय से की हो मगर वो फिल्में समाज के मुद्दों को केंद्र में रखकर बनाई गई थी। फैशन,Dunno Y Na Jane Kyon जैसी फिल्में समाज के उन वर्ग की कहानियों को बयां करती हुई थीं जिन्हें समाज ने हमेशा टेढ़ी नज़रों से देखा। युवराज पाराशर ने बड़े फिल्मी सितारों के साथ काम किया है और आगे भी वो बड़े सितारों के साथ काम कर रहे हैं। ज़ीनत अमान,हेलेन,कबीर बेदी,जरीना वहाब आदि चेहरों के साथ वो अब तक अलग अलग फिल्मों में दिख चुके हैं। स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर ने युवराज पर फिल्माए दो गीतों को आवाज़ भी दी,जिसको बताते हुए आज भी युवराज भावुक हो जाते हैं।
मेहरू(सांग), लाली व बहार ने लाई, डिज्नी हॉटस्टार पर दर्शकों की बहार
बतौर लेखक व निर्देशक युवराज ने जब लाली बनाई तो उसे डिज्नी हॉटस्टार पर 17 मिलियन से ज्यादा लोगों ने देखा व सराहा। इसी तरह बहार लघु फ़िल्म( शार्ट फ़िल्म) को भी खूब प्रशंसा मिली। मोना अम्बागांवकर के अभिनय से सजी इन दोनों लघु फिल्मों ने दर्शकों की खूब तारीफ़ बटोरी। अब तक ये दोनों फिल्में दर्जनों नेशनल व इंटरनेशनल अवार्ड जीत चुकी है। जिसके पीछे एक युवा लेखक व निर्देशक युवराज पराशर की मेहनत है। इसके अतिरिक्त युवराज की कई फिल्में हैं,जिन्हे उनके विकिपीडिया पर देखा जा सकता है।
युवराज आगे अपनी फिल्म ‘व्रद्धा’ लेकर आ रहे हैं। जिसकी कहानी उन्होंने ही लिखी है और वो इसका निर्देशन भी कर रहे हैं। युवराज की कहानियों में सुदूर ग्रामीण अंचल में घट रही घटनाओं व उस समाज का चित्र बकायदा दिखता है,जिसे वो पर्दे पर उतारने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।
बॉलीवुड के इस बदलते दौर में सफल निर्देशक व लेखक वही होगा जो समय व समाज के साथ न्याय करती फिल्मों को लाएगा। एक युवा निर्देशक व लेखक के रूप में युवराज पाराशर को भविष्य के सिनेमा में स्थापित चेहरे के रूप में देखा जा सकता है।