सिनेमा लेजर व क्रोमा का नही,समय व समाज का कैनवास है,जिसमे हम समाज के चित्र को पर्दे पर उतारते हैं। इन दिनों एक हट कर फ़िल्म आ रही,जिसमे मट्टो के बहाने एक आधे भारत की कथा सुनाई जा रही।
क्रोमा और स्टूडियो की रंगीनियत से निकलकर जमीन पर जाकर,माटी में सनकर,सर पर बोझा लादकर अपनी रोजी-रोटी का जुगाड़ करते व विकास की धारा से दूर ,एक ऐसे समाज की कहानी,जिससे अक्सर हमसे गाहे-बगाहे भेंट हो ही जाती है। प्रकाश झा प्रोडक्शन से आ रही फ़िल्म ‘मट्टो की साइकिल’। इस साइकिल पर जैसे आधा भारत सवारी करता दिख रहा हो।
काफी समय बाद बड़े पर्दे पर ऐसी कहानी आ रही जो समाज की सामाजिक व राजनितिक संरचना को दिखाती है। हाशिये के समाज मे रह रहे लोगों के लिए ,उनके हक-उनके संघर्ष की कहानी बयां करती हुई फ़िल्म है मट्टो की साइकिल।
निर्देशक,निर्माता,अभिनेता व लेखक प्रकाश झा खुद इसमे अभिनय कर रहे हैं। मथुरा के निर्देशक एम.गनी ने इस फ़िल्म में गांव के परिदृश्य को जीवंत उतार दिया। प्रकाश झा हमेशा संवेदनशील मुद्दों को पर्दे पर दिखाते रहे हैं। उनके अंदर समाजिक व राजनीतिक समझ है। वो जमीन से जुड़े मुद्दों को अपने पर्दे पर ज्यादा जगह देते हैं और अलग धारा में रहकर भी सफल होते हैं।
इस फ़िल्म के ट्रेलर को देखकर सोशल मीडिया पर इस फ़िल्म को लेकर अलग ही बात चल रही। इसने शहर व गांव दोनों जगहों पर अपनी छाप छोड़नी शुरू कर दी है। लोगों में चर्चा है कि ये फ़िल्म ऑस्कर की रेस में जाने योग्य है।
डिम्पी मिश्रा,अनिता चौधरी जैसे दिग्गज रंगकर्मी,
पुलकित फिलिप जैसे सम्वाद लेखक और उसपर प्रकाश झा का अभिनय,फ़िल्म में जान भर दिया है।