‘जंगल में रहत हौं तो का उल्लू हूँ’ अंजली को देख जब दर्शकों को याद आयीं स्मिता पाटिल
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२०१२ में एक फिल्म आती है 'चक्रव्यूह'। प्रकाश झा के निर्देशन में बनी इस फिल्म में एक सांवली सलोनी लड़की जब अपने मुँह से गमछा हटाते हुए बुंदेली का यह संवाद बोलती है तो देखने वाले की नज़र उसके चेहरे पर ही ठहर जाती है। चेहरे पर गंभीर भाव, संवाद को बोलने की लय और पात्र के साथ न्याय करती एक मराठी लड़की। आज उसी लड़की का जन्मदिन है। हम बात कर रहे अभिनेत्री अंजली पाटिल की। महाराष्ट्र के नासिक में जन्मी अंजली ने चक्रव्यूह के बाद वो इतिहास रचा कि दर्शक वर्ग में स्त्री वर्ग की आवाज बुलंद करने वाली वो मज़बूत अभिनेत्री बन गयीं। इसी फिल्म के लिए उन्हें स्टार कास्ट अवार्ड के लिए नॉमिनेट भी किया गया।यह अलग बात है की वो अवार्ड अंजली के खाते में नहीं आया,मगर वो आदिवासी व् सुदूर ग्रामीण व् जंगलों में रहने वाली लड़कियों की आवाज बन पूरे भारत के संघर्षशील समाज के लिए आइकन बन गयीं।
शुरूआती शिक्षा नासिक से हुई। 14 साल की उम्र तक,अंजली ने अपने करियर के रूप में प्रदर्शन कला [ परफार्मिंग आर्ट ] को आगे बढ़ाने का फैसला किया था। उन्होंने अपने माता-पिता को उसे पुणे विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स में भेजने के लिए राजी किया। जून 2007 में, उन्होंने अपनी उत्कृष्टता के लिए स्वर्ण पदक के साथ कला में स्नातक की डिग्री अर्जित की। उसके बाद अंजली पाटिल को नई दिल्ली में ‘नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा’ में थिएटर डिजाइन में मास्टर्स करने के लिए चुना गया था। इसने उन्हें भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय फिल्म और थिएटर अभिनेताओं और निर्देशकों के साथ बड़े पैमाने पर काम करने के कई अवसर प्रदान किए।
पाटिल को पहली फीचर फिल्म का मौका प्रशांत नायर की हिंदी-अंग्रेजी अंतरराष्ट्रीय स्वतंत्र फिल्म दिल्ली इन ए डे के साथ मिला। जिसमे वो रोहिणी नाम की एक लड़की का किरदार निभा रही थीं। इसके लिए उन्हें समीक्षकों द्वारा सराहना भी मिली। फिल्म का प्रीमियर एशिया में 13 अक्टूबर 2011 को मुंबई फिल्म समारोह में हुआ और अगस्त 2012 में भारत में नाटकीय रूप से रिलीज़ किया गया।
2010-11 में, पाटिल ने एक अंतरराष्ट्रीय लघु फिल्म ग्रीन बैंगल्स में मुख्य अभिनेत्री और निर्माता के रूप मे भी काम किया। 'ओबा नथुवा ओबा एक्का' (आपके साथ, आपके बिना) मशहूर श्रीलंकाई लेखक-निर्देशक प्रसन्ना विथानगे के साथ यह उनकी पहली अंतर्राष्ट्रीय फिल्म थी । पाटिल ने खुद डबिंग की और वह सिंहली भाषा में डब करने वाली पहली भारतीय अभिनेत्री बन गईं। उनके शानदार प्रदर्शन ने नवंबर 2012 में गोवा में भारत के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए सिल्वर पीकॉक पुरस्कार जीता। वह इस पुरस्कार को प्राप्त करने वाली सबसे कम उम्र की अभिनेताओं में से एक हैं। पाटिल को 2017 में उनके प्रदर्शन के लिए श्रीलंका के राष्ट्रपति पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
2016 में पाटिल ने नागराज मंजुले के साथ सह-अभिनेता के रूप में अपनी पहली मराठी फिल्म ‘द साइलेंस’ की, जिसके लिए उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। उन्होंने राकेश ओमप्रकाश मेहरा की ‘मिर्ज्या ‘ में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जो 2016 में रिलीज़ हुई थी। उन्होंने 2018 में ओमप्रकाश मेहरा की फिल्म ‘मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर’ में लीड के रूप में काम किया ,जिसके लिए उन्हें खूब सराहना मिली।
2017 में राजकुमार राव के साथ न्यूटन में माल्को-आदिवासी[ BLO ] बोलने वाले गोंडी के रूप में पाटिल के प्रदर्शन को सभी स्तरों पर बहुत सराहा गया था।
उन्होंने पा रंजीत की काला में एक बोल्ड और भयंकर कार्यकर्ता पुयाल की भूमिका निभाई, जिसमें रजनीकांत ने तमिल फिल्म जगत में एक नया सितारा अंजली पाटिल के रूप में पाया।
सहज, सरल व् सामजिक सरोकारों से जुडी अंजली आज भी महिलाओं से जुड़े मुद्दों को केंद्र में रखकर काम करती हैं। हिंदी के साथ साथ मराठी, तमिल ,तेलगू, मलयालम व अंग्रेजी भाषा की फिल्मों में काम कर चुकी अंजली आज भी बतौर निर्माता ,निर्देशक व अभिनेत्री काम कर रही हैं। लगातार अपने कार्यों से अंजली फिल्म जगत में एक अलग पहचान बना रही हैं। सिर्फ अभिनय ही नहीं बल्कि असल जिंदगी में भी वो साधारण , सौम्य, मिलनसार व समाज की सच्ची कार्यकर्ता भी हैं।
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