18th September 2023, Mumbai: सिने जगत में कम ही ऐसे लोग रहे हैं जिन्होंने सिनेमा की ताकत को समझा और उसका सदुपयोग करके ऐसी फिल्में समाज को दीं जिससे समाज की दशा और दिशा तय हुई। शबाना आज़मी का नाम भी उसी फेहरिस्त में है,जिन्होंने परदे पर अपने आप भी आम समाज की आवाज बनाया और उनके सुख दुख को अपने अभिनय से बयां किया। हाशिए के वर्ग और स्त्रियों की मनोदशा को उन्होंने फिल्मी पर्दे पर ही नही उतारा बल्कि अपनी असल जिंदगी में भी उसको कभी दूर नहीं रखा। सामाजिक आंदोलनों में वो हमेशा सक्रिय रहती हैं और खुलकर अपनी बात रखने के लिए जानी जाती हैं। आज उन्ही शबाना आजमी का जन्मदिन है।
कैफ़ी आज़मी की बेटी ने बदल दी सिमेना की धारा
शबाना आजमी मशहूर गीतकार और शायर कैफ़ी आज़मी की बिटिया हैं। उनकी मां शौकत आजमी काफ़ी मशहूर मंच अभिनेत्री रही हैं।उनका नाता हमेशा से ही ऐसे संगठनों से रहा जहां प्रगतिशील सोच वालों की आवाजाही रही। बचपन से ही उनपर कम्युनिज्म का काफी गहरा प्रभाव रहा है। कमुनिष्ट पार्टी के कार्यालय में ही उनका बचपन बीता,इसलिए उनके अंदर मजदूर और शोषित वर्ग के लिए एक वाजिब चिंता पैदा हुई जिसका प्रभाव उनकी फिल्मों में भी देखने को मिलता है।
अंकुर फिल्म से की शुरुआत
शबाना आजमी ने पहली फिल्म श्याम बेनेगल निर्देशित अंकुर किया। यह फिल्म 1974 में आई थी। उनके साथ थे अभिनेता अनंत नाग। यह फिल्म आक्रामकता और मनोवैज्ञानिक पीड़ा से ओतप्रोत थी। इस फिल्म में सामंती शोषण और समाज के दोहरे मानदंड को दिखाया गया है। बाद में बेनेगल जी ने शबाना के साथ मंडी,निशांत और जुनून जैसी फिल्में बनाई जो समानांतर सिनेमा की मजबूत फिल्में साबित हुईं।
सत्यजीत रे भी रहे शबाना की मुरीद
मुंशी प्रेमचंद की कहानी पर आधारित फिल्म शतरंज के खिलाड़ी में शबाना एक चिड़चिड़ी बेगम के किरदार में दिखीं। इसमें शबाना का सूक्ष्म अभिनय देखने को मिलता है तभी तो सत्यजीत रे ने उनके लिए कहा था कि शबाना आजमी तुरंत अपने देहाती परिवेश में फिट नहीं बैठती लेकिन उनकी शिष्टता और उनका व्यक्तित्व कभी संदेह में नही रहा। वो अपनी सारी क्षमताएं प्रदर्शित करके खुद को बेहतरीन नाटकीय अभिनेत्रियों में से एक के रूप में स्थापित करती हैं।
उनकी ये फिल्में जरूर देखें
शबाना आजमी ने समाज के मध्यम और निम्न वर्ग के दर्द को अपनी फिल्मों में इस कदर बया किया है कि उनको देखने के बाद लगता ही नहीं कि हम फिल्म देख रहे हैं। लगता है हूबहू सब कुछ रिकॉर्ड कर लिया गया है। पार जैसी फिल्मों को देखने के बाद ऐसा ही लगता है। जिसमे नसीरुद्दीन शाह के साथ उनका अभिनय इतना मारक है कि आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे। यह फिल्म बेहतरीन सिनेमा का उदाहरण है। अब ऐसी फिल्में बनना लगभग नामुमकिन सा ही है।
अंकुर से रॉकी और रानी तक
शबाना की फिल्मों को देखकर कभी आप ये नही कह सकते कि किन्ही दो फिल्मों में शबाना एक जैसी दिखी हों। सब फिल्मों में उनका अभिनय और अंदाज़ अलग ही रहता है। चाक एंड डस्टर में एक प्राइवेट स्कूल के शिक्षकों का दर्द बयां करना हो या फिर फायर में नंदिता दास के साथ समलैंगिक संबंध को लेकर समाज के बने बनाए दकियानूसी नियमों को लांघना हो,शबाना ने सबके साथ बराबर का न्याय किया।
शबाना ने जितनी भी फिल्में की है ज्यादातर फिल्में अवार्ड विनिंग रहीं है। अर्थ,पार,स्वामी,भावना,नीरजा,मंडी सबकी सब एक कल्ट सिनेमा है। उनकी एक एक फिल्मों पर काफी बात की जा सकती है। बहुत कुछ लिखा जा सकता है। उनके जन्मदिन पर आपको एक बार जरूर ये फिल्में देखना चाहिए।
रिपोर्ट – विवेक रंजन सिंह