अभिनेता सलमान खान के बहनोई अभिनेता आयुष शर्मा को एक हिट फिल्म की तलाश है। इस बार उन्होंने अपनी फिल्म रुस्लान में पूरी ताकत झोंक दी।फिल्म की कहानी शुरू होती है एक एनकाउंटर के साथ, जहां पुलिस के साथ मुठभेड़ में एक आंतकी और उसका परिवार मारा जाता है, लेकिन उसके बेटे रुस्लान (आयुष शर्मा) को एटीएस चीफ समीर सिंह (जगपति बाबू) ना केवल बचा लेता है, बल्कि गोद भी ले लेता है, क्योंकि उसकी कोई औलाद नहीं होती है।
रुसलान ने मिटाया आतंक
रुस्लान देश सेवा करना चाहता है। वह खुद पर आंतकी के बेटे होने का दाग मिटाना चाहता है। भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ में उसे मौका मिलता है, लेकिन वहां उसका काम केवल जानकारियां इकठ्ठा करना होता है, ना कि किसी को मारना। फिर भी जैसा कि हिंदी फिल्मों में होता है, बाकी रॉ एजेंट्स की तरह वह भी सीनियर के आर्डर्स नहीं मानता है। इस चक्कर में कुछ ऐसी गलतियां कर बैठा है, जिससे वही आतंकी साबित हो जाता है। खुद पर लगे इस दाग को रुस्लान कैसे साफ करेगा, उस पर कहानी आगे बढ़ती है।
ट्रेलर में दिखी पूरी फ़िल्म की कहानी
दो घंटे की फिल्म देखने के बाद यही बात समझ आती है कि ट्रेलर में फिल्म के सारे बेस्ट सीन दिखा दिए गए थे। ट्रेलर देख लिया, मतलब फिल्म देख ली। अक्सर बड़े-बड़े फिल्मकारों से सुनते आए हैं कि बिना इमोशन के एक्शन फिल्म नहीं बनती है। इसमें एक्शन तो है, लेकिन इमोशन की भारी कमी है। आयुष ने फिल्म के लिए अपनी बाडी और सिक्स पैक एब्स बनाने से लेकर एक्शन में तेज-तर्रार होने के लिए खूब मेहनत की, लेकिन इस चक्कर में वह अपनी एक्टिंग पर काम करना भूल गए। भावुक, गुस्सैल हर सीन में वह एक जैसा अभिनय करते हैं। चेहरे पर भाव आने से पहले ही चले जाते हैं। आयुष फिल्म में बार-बार एक सवाल सबसे पूछते हैं कि क्या आपको मुझ पर भरोसा नहीं? फिल्म में तो उन्हें इसका जवाब कोई नहीं देता है। फिल्म देखने के बाद दर्शक उन्हें इसका जवाब दे पाएंगे। हालांकि, आयुष ने एक्शन दमदार किया है। अगर आयुष के डायलॉग्स कम और स्टंट ज्यादा रखे जाते तो यह एक अच्छी एक्शन फिल्म बन सकती थी।