गंभीर अभिनय व सहज़ संवाद शैली से पंकज त्रिपाठी ने फ़िल्म जगत में एक अलग रेखा खींच दी है,जिसपर चलना सबके वश की बात नही
2004 में आई फ़िल्म ‘रन’ में एक छोटे से किरदार में दिखने वाले पंकज त्रिपाठी को कौन जानता था कि एक समय बाद उनके संवादों को उनकी तरह बोलने की लोग नकल करेंगे। मिर्जापुर के बाद अब फिल्में व सीरीज पंकज के नाम से चल रही हैं। कंटेंट में दम और उसपर पंकज त्रिपाठी का अभिनय। युवाओं में किसी के गुरु बन गए हैं तो किसी के दद्दा व भैया।
गोपालगंज,बिहार में 5 सितम्बर 1976 को जन्मे पंकज त्रिपाठी के शुरुआती दिन के संघर्ष की कहानी बड़ी लम्बी है। उसे इस तरह भी आंका जा सकता है कि फ़िल्म जगत में उनको अपनी जगह बनाने में कैसी मशक्कत करनी पड़ी।
एक मध्यम किसान परिवार से निकले पंकज त्रिपाठी ने अपनी शुरुआती पढ़ाई गांव से ही की। उसके बाद वो आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली चले गए। उनके पिता का सपना था कि वो डॉक्टर बने मगर पंकज त्रिपाठी को हमेशा से थिएटर में रूचि रही। वो गांव की नौटंकी में स्त्री पात्र भी किया करते थे। अपने ग्रामीण संस्कृति व कला के प्रति उनकी हमेशा से रुचि रही।
दिल्ली में जाकर उन्होंने होटल मैनेजमेंट का कोर्स किया और पार्ट टाइम जॉब के लिए उन्होंने एक होटल में कुक की नौकरी जॉइन कर ली। नौकरी के बाद वो तुरन्त थिएटर जाते। कुछ ही समय बाद उन्होंने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में दाखिला ले लिया,जहां उनके सीनियर मनोज वाजपेयी से उनकी मुलाकात हुई।
वक्त आया 2004 का,जब वो कुछ हजार रुपये लेकर मुम्बई आये। मायानगरी में पैसो को खत्म होते देर नही लगती,वही पंकज त्रिपाठी के साथ भी हुआ। अर्थ संकट से वो तनिक भी डगमग न हुए। उनकी पत्नी मृदुला के खर्च से ही वो मायानगरी में दौड़भाग करते रहे और छोटी-मोटी फिल्मों के बाद वो दिखे गैंग्स आफ वासेपुर में,जहां से उनको एक मंझे अभिनेता के रूप में देखा जाने लगा।
इस फ़िल्म से ही पंकज त्रिपाठी दर्शकों की नज़र में आ गये और उसके बाद मसान,न्यूटन,स्त्री फिल्मों में उनके अलग ही अभिनय की चर्चा हुई। फिर आई वेब सीरीज मिर्जापुर। इस वेब सीरीज ने पूरे हिंदी पट्टी के दर्शकों खासकर उत्तर प्रदेश के बड़े दर्शक वर्ग को प्रभावित किया। इसके आने से पंकज त्रिपाठी को लोग समकालीन सिनेमा का एक दमदार अभिनेता के रूप में देखने लगे। इस समय ओ टी टी पर आ रही उनकी वेब सीरीज क्रिमिनल जस्टिस ने धमाल मचाकर रखा है। जहाँ बड़े पर्दे की फिल्मों को बॉयकॉट व कैंसिल कल्चर का सामना करना पड़ रहा है,वहां पंकज त्रिपाठी जैसे कलाकार बड़ी ही शांति से दर्शकों के बड़े वर्ग को प्रभावित कर रहे हैं।
सिनेमा का यह दौर बदलाव की मांग कर रहा है। उसको अपने समय व समाज की छवि व उसके बदलावों को पर्दे पर देखने की उम्मीद बढ़ी है,जिसमे पंकज त्रिपाठी जैसे कलाकार सफल होते दिख रहे हैं।