समावेशिता के समर्थक के रूप में, फिल्ममेकर प्रेरणा अरोड़ा का कहना है कि अब, पहले से कहीं ज़्यादा, फीमेल ओरिएंटेड फिल्में स्टीरियोटाइप्स को चुनौती देने और बातचीत को शुरू करने के लिए आवश्यक हैं।
एक समय था जब मेकर्स को महिला प्रधान फिल्मों या वुमन सेंट्रिक कहानियों पर भरोसा नहीं था क्योंकि उन्हें लगता था कि ये फिल्में बॉक्स ऑफिस पर पैसा नहीं कमाएंगी। लेकिन वो भी वो दौर था जब फिल्म इंडस्ट्री में पुरुषों का दबदबा था। यह पुरुषों की दुनिया थी और महिलाएं पुरुषों द्वारा निर्धारित नियमों के अनुसार ही रह रही थीं।
हालाँकि, पासा पलट गया और पिछले कुछ सालों में मेघना गुलज़ार, मीरा नायर, गुनीत मोंगा, एकता कपूर और प्रेरणा अरोड़ा जैसी कई महिलाओं ने फिल्ममेकिंग बिज़नेस में उतरकर सामाजिक और राजनीतिक मानकों को चुनौती दी। उन्होंने न सिर्फ महिला-केंद्रित कहानियां लाकर बदलाव की लौ को हवा दी, बल्कि चुनौती भी दी और इंडस्ट्री के टिपिकल मानदंडों से परे भी गईं। उन्होंने अनदेखी, अपरिचित और सबसे कम चर्चित महिला नैरेटिव्स की खोज की, जो न सिर्फ दर्शकों को पसंद आई, बल्कि भारतीय सिनेमा के डायनामिक्स को भी बदल दिया।
समावेशिता के समर्थक के रूप में, फिल्ममेकर प्रेरणा अरोड़ा का कहना है कि अब, पहले से कहीं ज़्यादा, फीमेल ओरिएंटेड फिल्में स्टीरियोटाइप्स को चुनौती देने और बातचीत को शुरू करने के लिए आवश्यक हैं। उन्होंने दूसरे फ़िल्ममेकर्स और दर्शकों से फीमेल नैरेटिव्स अपनाने का आग्रह किया। फिल्ममेकर ने कहा,”फीमेल ओरिएंटेड फिल्में सिर्फ हमारे समय का प्रतिबिंब नहीं हैं; वे बदलाव के लिए कैटेलिस्ट हैं।
आज की दुनिया में, जहां समावेशिता और प्रतिनिधित्व पहले से कहीं ज़्यादा मायने रखता है, स्क्रीन पर महिलाओं की आवाज को बढ़ाना महत्वपूर्ण है। ये फिल्में समाज के दर्पण के रूप में काम करती हैं, महत्वपूर्ण चर्चाओं को जन्म डेंटी हैं और अधिक न्यायसंगत और सहानुभूतिपूर्ण भविष्य का मार्ग बनाती हैं।”
इंडस्ट्री में परिवर्तनकारी बदलाव में अरोड़ा का योगदान उनकी आगामी फिल्म ‘हीरो हीरोइन’ के साथ जारी है। फिल्म ‘हीरो हीरोइन’ एक पैन इंडिया प्रोजेक्ट है, जिसमें दिव्या खोसला मुख्य भूमिका में हैं जबकि तुषार कपूर, सुचित्रा कृष्णमूर्ति और कई कलाकारों ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभा रहे हैं।